श्री श्यामसुन्दर, श्री राधा रानी जी के केशो का श्रृंगार करते हुए
ये है हमारे प्रिय श्री धाम वृन्दावन के श्री राधा श्यामसुंदर जी, श्री श्यामसुंदर जी आज हमारी प्रिय श्री राधा जी के केशो का श्रृंगार कर रहे है.... इनका यह स्वरुप हमे पुनः श्री श्यामसुंदर जी की एक दिव्य कथा की स्मृति करता है.....आइये चले एक बार फिर श्री भगवान की उस दिव्य लीला का रसास्वादन करे....
एक बार श्री श्यामसुंदर श्री राधा जी और अन्य सभी गोपियों के साथ शरद ऋतू की पूर्णिमा में रास नृत्य कर रहे थे... तभी श्री राधा जी स्वयं को छुपाने के लिए उस रास नृत्य के क्षेत्र से बाहर आ जाती है और वही थोड़ी दूर एक निकुंज में चली जाती हैं... और जब इधर श्री श्यामसुंदर को श्री राधा की अनुपस्थिति का आभास होता है तो वे भी तुरंत उस रास नृत्य को छोड़ कर श्री राधा जी को ढूंढने के लिए निकुंजों की और निकल पड़ते है...
श्री राधा जी को ढूंढते-ढूंढते श्री श्यामसुंदर उस निकुंज में पहुचते है....जहा श्री राधारानी एकांत में बैठी हुई थी.... और श्री श्यामसुंदर उन्हें भिन्न भिन्न तरीको से उनको मनाते हुए कहने लगते है - :
रूठी हुई श्री राधा रानी को मनाते हुए श्यामसुन्दर
"ओ राधा आज मैं तुम्हारे केशो का श्रृंगार स्वयं करूँगा, देखो तो ये कितने उलझ से गए हैं".. ऐसा कह श्री श्यामसुंदर श्री राधा का हाथ पकड़ निकुंज के और अंदर ले जाते हैं..... थोड़ी दूर जाकर उन्हें बहुत ही सुन्दर फूलो की वाटिका दिखती है....जिसमे चंपा, बेली, जूही आदि फूलो की सुगंध से वातावरण परम पवित्र तथा स्वच्छ सा लगता था.... श्री श्यामसुंदर ने श्री राधा जी के केशो के श्रृंगार के लिए वहां पर गिरे हुए सभी बेली, चंपा, जूही आदि के फूलो को बीन लिया....और कुछ दूरी पर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ जाते है [ जिसे आजकल श्री धाम वृन्दावन में श्रृंगारवट के नाम से जाना जाता है ] .....श्री श्यामसुंदर जी श्री राधा जी के केशो को खोल कर कंघी से उनके केशो को बांधते है.....और उनके केशो को निकुंज से लाये हुए उन फूलो से श्रृंगार करने लगते है.....
श्री श्यामसुन्दर, श्री राधा रानी जी के केशो का श्रृंगार करते हुए
और इधर रास नृत्य के मध्य जब सभी गोपियों को श्री श्यामसुंदर जी की अनुपस्थिति का आभास होता है, तो उनका ह्रदय खिन्न हो जाता हैं और दुखित हृदय से वे सभी एक साथ वहाँ से निकल कर श्यामसुन्दर को ढूंढने के लिए निकुंजों के ओर निकल पड़ती है..और वहां पर प्रत्येक चल-अचल जीव से इसप्रकार पूछने लगती है...
सबसे पहले उन्होंने एक भँवरे से पूछा : "ओ भँवरे क्या तुमने कृष्ण को कही देखा है?...वो हमे रास नृत्य में अकेले छोड़ कही चला गया हैं...."
फिर उन्होंने एक अशोक वृक्ष से पूछा : "ओ अशोक के वृक्ष, तुम्हारा नाम अशोक है, जिसका तात्पर्य शोक का नाश करने वाला....तो कृपा कर हम लोगो का भी शोक हरो....और हमे ये बताओ की क्या तुमने हमारे प्रिय श्यामसुंदर की यहाँ से गुजरते हुए देखा है, वो निर्दयी हमे अकेले छोड़ कही चला गया है...."
इसप्रकार वे सभी गोपियाँ श्यामसुंदर के बारे में पूछते हुए थोड़ी ही दूर जाती है की गोपी ललिता ने चोंककर सभी गोपियों से कहा : "अरी सखियों ! ये देखो.... ये पदचिन्ह ये तो कृष्ण के ही हैं.....देखो में इनको भलीभांति पहचान सकती हूँ..... इसमें देखो पवित्र ध्वजा, शंख, चक्र, कमल का फुल के चिन्हांकित है..... हो न हो ये हमारे कन्हैया का ही पदचिन्ह है.....चलो हम इन्ही पदचिन्हों का अनुशरण करते है....."
श्री श्यामसुन्दर के विरह से व्याकुल समस्त गोपियाँ श्यामसुन्दर को ढूढती हुई
ऐसा कह ललिता जी ओर अन्य गोपियाँ उन पदचिन्हों का अनुशरण कर निकुंज के उस स्थान पर पहुंचती है....जहा श्यामसुंदर ने श्रीराधा जी को पाया था....वहां पहुँच विशाखा सखी ने सहसा चोंककर कहा - "अरी ओ ललिता और सब सखियों ये देखो यहाँ तो अब दो दो पदचिन्ह हैं.....एक तो नंदबाबा का छोरा अपने कृष्ण का हैं और यह दूसरा पदचिन्ह किसका है?"
ललिता ने कहा : " ये जरुर राधा के ही पदचिन्ह होंगे, जो श्यामसुंदर पदचिन्ह के के साथ साथ में है....ऐसा प्रतीत होता है की वो कृष्ण के साथ साथ ही थी, और वो निर्दयी कृष्ण अपने हाथ उसके कंधो पर रखते हुए यही से गुजरा हैं....ठीक वैसे, जैसे कोई हाथी अपनी हथनी के वन में साथ साथ भ्रमण करता हैं....इसमें कोई संशय नहीं की श्यामसुंदर के हृदय में राधा के लिए हम सभी से ज्यादा प्रेम हैं.... इसलिए तो उस निर्दयी ने हमे अकेले छोड़ यहाँ राधा के साथ भ्रमण कर रहा हैं.."
श्री राधारानी और श्री श्यामसुन्दर निकुंजों में भ्रमण करते हुए
और इधर श्री श्यामसुंदर जी ने श्री राधा जी के केशो का बहुत ही सुन्दर श्रृंगार किया और वे दोनों उस श्रृंगारवट के स्थान को छोड़ निकुंज के और अंदर भ्रमण के लिए निकल पड़ते है.....
उधर सभी गोपियाँ उसी पथ पर और थोड़ी दूर आगे आती है और उस वाटिका के स्थान पर पहुचती है, जहाँ श्री श्यामसुंदर और श्री राधा जी ने फूलो को बीना था....
तभी अचानक रुपमंजिरी सहसा रुक कर कहती है : " अरी ओ ललिता !! , अरी ओ विशाखा !! देखो..... देखो यहाँ पर तो अब राधा के चरण कमलो के पदचिन्ह दिखाए नहीं देते... यहाँ जरुर ये सुखी हुई घास राधा के चरणों में चुभ रही होगी और श्यामसुंदर ने जरुर उसे उस घास की चुभन से बचाने के लिए अपने कंधो पर उठा लिया होगा... आहा !! हमारी राधा, श्यामसुंदर को कितनी प्यारी है.... यहाँ जरुर कृष्ण से इस वाटिका से कुछ फूल राधा का श्रृंगार करने के लिए लिए होंगे.. तभी तो उसके ये आधे पदचिन्ह दिखाए दे रहे है.....ऐसा लगता है जैसे उसने उन फूलों को तोड़ने के लिए वो ऊपर की ओर अपने एड़ी के बल खड़ा हुआ होगा...आहा !! हमारी राधा कितनी सौभाग्यशाली हैं... "
गोपियाँ श्रृंगार वट वृक्ष के समीप पहुचती है
उसके पश्चात सभी गोपियाँ उस वट वृक्ष के नीचे पहुचती है जहाँ श्री श्यामसुंदर ने श्री राधा जी का श्रृंगार किया था....और वो सभी श्रृंगार का सामन वही पड़ा हुआ था...
एक गोपी दर्पण को हाथो में लेकर कहने लगी : "अरी देखो !! यहाँ पर तो श्रृंगार का सामान पड़ा हुआ है.....कृष्ण ने जरुर ही यहाँ पर राधा के केशो का श्रृंगार किया होगा....देखो ये राधा भी कितनी निर्दयी हैं.... निश्चय ही राधा ही श्यामसुंदर को इस घने निकुंज में लेकर आई हैं....मुझे तो लगता है उसे स्वयं पर बहुत गर्व हो गया हैं.....क्योकि श्यामसुंदर उससे बहुत ज्यादा स्नेह करते हैं.......हम लोग भी तो श्यामसुंदर से कितना स्नेह करती हैं.....हम लोगो के स्नेह में क्या त्रुटी हैं जो इसप्रकार श्यामसुंदर हमे विरह में अकेले छोड़ राधा के पीछे-पीछे यहाँ तक आ गए.... यह सब राधा का ही किया हुआ हैं.. उनमे से कुछ गोपियों ने इस बात का समर्थन तीव्र स्वर में इस प्रकार किया- " हाँ हाँ, राधा ही दोषी हैं..."
बिलकुल समीप में ही श्री राधारानी के साथ विहार करते हुए, श्री श्यामसुंदर ने जब गोपियों का यह तीव्र स्वर सुना तो उन्होंने श्री राधा जी से प्रार्थना कि वो अतिशीघ्र ही उस स्थान को उनके साथ छोड़ दे...परन्तु श्री राधा जी ने कहा कि वो बहुत थक गयी हैं और बिलकुल भी नहीं चल सकती..... राधा जी के ऐसा कहने पर स्वयं भगवान श्यामसुंदर घुटनों के बल बैठते है... और राधा जी से कहते है कि - "ओ राधा तुम मेरे कंधो पर बैठ जाओ..."
और जैसे ही श्री राधा जी श्यामसुंदर के कंधो पर बैठने को जाती है..श्री श्यामसुंदर तुरंत अदृश्य हो जाते है.....
विरह से व्याकुल श्री राधा रोने लगी और एस प्रकार कहने लगी : " ओ प्रिये, ओ कृष्णा, ओ श्यामसुंदर.....तुम कहा चले गए? तुम कहाँ हो? ओ प्रिये तुम्हारी इस चिर सेविका को अपना दरस करवाओ? कृपा कर मेरे पास आओ... "
विरह वेदना से संतप्त श्री राधारानी विलाप करती हुई
श्री राधारानी, श्री श्यामसुंदर जी के विरह में व्यथित हो रोने लगती हैं....और उनके रुदन का स्वर सुन सभी गोपियाँ और उनकी सखियाँ उस दिशा की और निकल पड़ती है जहाँ से वो रुदन का स्वर आ रहा था......वहां पहुँच वे सभी श्रीराधा जी को रुदन करते हुए पाती है और जब सभी गोपियाँ को पता चलता है कि वास्तव में राधारानी जी भी श्री कृष्णा विरह में व्याकुल हैं तो वे सभी दुखित हो जाती हैं.....और उनको बहुत पश्चताप होता है.....
पहले तो उन गोपियों ने इर्ष्यावश श्रीराधा जी पर यह दोष मंडित किया था कि वो अकेले ही श्री श्यामसुंदर को निकुंजो में लेकर आई हैं और विहार कर रही हैं.... परन्तु जब उन सभी को ये पता चला कि श्यामसुंदर तो स्वयं राधा जी को विरह के अग्नि में जलते हुए छोड़ गए है और राधारानी उसके लिए विलाप कर रही है, तो उनको बहुत ही पश्चताप का अनुभव होता है....और हृदय से दुखित हो उन्हें, श्री राधाजी से सहानुभूति होने लगती हैं...
उसके पश्चात श्री राधा जी ने सभी गोपियों का सारा वृतांत कह सुनाया की कैसे उन्होंने श्री श्यामसुन्दर से कठोर व्यवहार किया कि, "मैं थक गयी हूँ, अब नहीं चल सकती"... ऐसा सुन सभी गोपियाँ श्री राधा जी से सहानुभूति प्रकट करती है.....
सच कहा जा तो यही श्री कृष्ण प्रेम की परम चेतना है.....
पुनः श्री श्यामसुन्दर के विरह से व्यथित श्री राधा और गोपियाँ श्यामसुन्दर को निकुंजो में ढूढती हुई
उसके पश्चात सभी गोपियाँ श्रीराधा जी को साथ ले श्री श्यामसुंदर को ढूंढने के लिए निकुंजो के और अंदर निकल पड़ती है.....और मार्ग में आते हुए सभी चल-अचल जीवों से श्री कृष्ण का पता पूछती जाती हैं..... रात्रि का जब दूसरा पहर में जब चंद्रमा की रोशनी उन घने निकुंजों में कम होने लगती हैं और थोडा थोडा अन्धकार व्याप्त होने लगता है तो, वो सभी गोपियाँ श्री राधा जी सहित एक निश्चित स्थान में रुक जाती है....उनकी बुद्धि, ह्रदय और आत्मा संपूर्ण रूप से श्री कृष्ण की यादों में डूब जाते हैं.....
कुछ समय पश्चात सभी गोपियाँ श्री राधा जी सहित वहाँ से उठ, श्री यमुना जी के तट पर यह सोच कर आती है... की संभव हो श्री श्यामसुंदर उन्हें वहां मिल जाये... परन्तु श्यामसुंदर तो उन्हें वहां भी न मिले तो वो सभी गोपियाँ अपने सभी सांसारिक बंधनों को भूल और श्री श्यामसुंदर को अपना हृदय समर्पित कर और अपने नयनो में अश्रु लिए इस प्रकार अपनी भावनाओ को व्यक्त करते हुए श्री श्यामसुंदर को पुकारने लगती है....
यमुना जी के तट पर श्री राधा रानी और समस्त गोपियाँ श्री श्यामसुन्दर के चिंतन में डूबी हुई
" ओ कृष्ण..ओ श्यामसुंदर....ओ मनमोहना.. तुम तो साक्षात् हरी हो, तुम ही तो उन शरणागत भक्तों के एकमात्र आश्रयदाता हो, जो अपना सर्वस्व त्याग तुम्हारी शरण में आते हैं... और तुम उनके समस्त दुखों को हर लिया करते हो....हमने भी इसी आशा से अपने अपने गृहों का त्याग कर दिया है और अपना संपूर्ण जीवन तुम्हारे श्री चरणों में समर्पित कर दिया है......हम सभी तुमसे यही प्रार्थना करती हैं की हमे अपने श्री चरणों की दासी बना लो....हम तुमसे यह नहीं कहते की हमे अपनी पत्नी स्वरुप में ग्रहण करो....बस हमे अपने श्री चरणों की दासी ही बना लो...."
"प्रिय कृष्ण...प्रिय श्यामसुंदर.....हम सभी तुम्हारे सुन्दर नयनाभिराम श्री मुख, जो की तुम्हारे घुंघराले केशो से सुसज्जित हैं, तुम्हारे माथे पर लगा तिलक, कानो में झूमती हुई बालियों और तुम्हारे गुलाब की पंखुडियो के सदृश्य होठो को देख मोहित हो गयी हैं....तुम्हारे श्री मुख की सुन्दरता इतनी मनमोहक है की केवल पुरुष और स्त्रियाँ ही नहीं बल्कि उसे देख तो ये गाये, पक्षियों, हिरनों आदि जानवरों, वृक्ष, लता, फुल और पौधे सभी मंत्र मुग्ध हो गए हैं, हमारी तो बात ही क्या हैं.... निश्चित ही जिस प्रकार भगवान् श्री हरी विष्णु, सभी देवी देवताओं की रक्षा दुष्ट दानवो से करते हैं ...ठीक उसी प्रकार हे श्यामसुंदर तुमने इस वृन्दावन की पवित्र भूमि में हम सभी व्रजवासिनो को समस्त प्रकार के कष्ट से संरक्षण हेतु अवतरित हुए हो....."
इस प्रकार से पुकारते पुकारते सभी गोपियाँ और श्री राधा जी, श्री श्यामसुंदर की एक झलक पाने के लिए बहुत ही जोर जोर से विलाप करने लगती हैं....
उसके पश्चात, श्री श्यामसुंदर अपने श्रीमुख पर मधुर सी मुस्कान लेकर उन सभी गोपियों के मध्य प्रकट होते हैं.....
श्री श्यामसुन्दर जी श्री राधा जी और समस्त गोपियों के साथ
जब श्री राधा जी और सभी गोपियों ने देखा श्री श्यामसुंदर पुनः उनके मध्य पधार चुके है, तो वे सब एक साथ उठ जाती हैं और उनका स्वागत बहुत ही मधुर और उनकी आँखों से प्रेमाश्रुओं की धराये उनकी आँखों से बहने लगती हैं.....जिसे देख हमारे प्रिय श्यामसुंदर जी अपने हाथो से उनके उन प्रेमाश्रुओं को पोंछते हैं.... और उन सभी को हृदय से लगाते हैं...
यह श्री धाम वृंदावन का वही स्थान श्रृंगार वट है जहा श्री श्यामसुन्दर जी ने श्री राधा जी के केशो का श्रृंगार किया था
नोट : श्री श्यामसुन्दर जी की इस लीला के कुछ दिनों पश्चात ही श्री हमारे प्रिय श्री श्यामसुन्दर जी ने एक देवकन्या का वेष धारण कर श्री राधा जी के धाम गए... और वहा जा देवकन्या वेषधारी श्री श्यामसुन्दर जी ने बहुत ही चतुराई से स्वयं की निंदा श्री राधा रानी के समक्ष कर उनके प्रेम की गंभीरता का परिक्षण किया और साथ ही साथ इस दिव्य श्रृंगार लीला के भेद को भी प्रकाशित किया..... आप सभी उस दिव्य लीला की कथा का रसास्वादन नीचे दिए गए लिंक पर कर सकते हैं....प्रस्तुत कथा इस ब्लॉग पे स्थान विशेष पर शब्दों को प्रकाशित करने की सीमितता के कारणवश तो भागो में प्रस्तुत हैं..... मैंने यह कथा श्री धाम वृंदावन के एक सुप्रसिद्ध रसिक संत श्री विश्वनाथ चक्रवती ठाकुर जी के ग्रन्थ "प्रेम सम्पुट" में पढ़ा था.... इस कथा को विस्तार से पढने के लिए आप सभी श्री विश्वनाथ ठाकुर जी रचित "श्री प्रेम सम्पुट नामक" ग्रन्थ पढ़ सकते हैं....
!! जय जय श्री श्याम सुन्दर जी !!
!! जय जय श्री राधा रानी जी !!
Jeannette Borsboom
Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare Hare Rama Hare Rama Rama
Rama Hare Hare
Rama Hare Hare
March 13 at 1:56pm ·
Himanshu Dev Banga
And I am immediately snapped up with a much more promising outcome, thanks Bro for being so kind enough:) jai Jai Shri Radhey Shaym!!!
March 13 at 5:14pm ·
Deepak Kumar Sharma
Hari Om...........
Prabhu Ko Pana Ho Toh , Pehle Khud Ko Khona Hoga !
Apni Mai Ko Bhulakar ,Purntya Prabhu Ka Hona Hoga !!
Prabhu Ko Pana Ho Toh , Pehle Khud Ko Khona Hoga !
Apni Mai Ko Bhulakar ,Purntya Prabhu Ka Hona Hoga !!
March 13 at 5:14pm ·
Vrunda Sakhi
Deepakji...tan, man, dhan, vaani, vartan, apman, ahankaar, tiraskaar sab kuch chode to mitti the mitti ho jaye toh Madhav mil jay....radhe radhe.
March 13 at 10:14pm ·
Shri Radhey meri swamini, mein Radhey ji ko Daas,
ReplyDeletejanam janam mohe dijiye, Sri Vrindaavan ko vaas
jai shree krushna, Manohar Shree Krushna leela...Manohar Mohan ki mohini maya ne sab gopiyan ka mun bharmaya, kitana aaradha tab kahi Bramha ko pragat paya.....radhe radhe.
ReplyDeleteJai ho karuna nidhaan ki tum sa sahaym sunder koi nhi mujh adahm ko bhi ane shri charno ki bahkti pardaan karo mere nath...aapki saran m hu.
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