श्री श्यामसुंदर तो महादेव शिव शंभु के आराध्य देव हैं, और प्रभु के हर अवतार में वे प्रभु के बाल रूप का दर्शन अवश्य करते हैं....सो इस बार भी महादेव शिव शंभु को श्री श्यामसुंदर के बाल रूप के दर्शन करने की ईच्छा हुई और वे एक योगी का भेष बनाकर मैया यशोदा के द्वार गोकुल में नन्दभवन के बाहर पहुँच कर इसप्रकार आवाज़ लगाते हैं…
योगी भेषधारी शिव शंभु : "अलख निरंजन......अलख निरंजन....कहाँ हो प्रभु?"
और फिर इसप्रकार गाने लगते हैं...
"एक योगी आयो री तेरे द्वार....दिखा दे मुख लाल का…
ओ मैया दिखा दे मुख लाल का…"
"तेरे पालने में पालनहार, दिखा दे मुख लाल का…
ओ मैया दिखा दे मुख लाल का…"
"लिए अंखियो में प्यास, योगी करे अरदास...
ओ मैया दिखा दे मुख लाल का…"
"मैया ऐसो संजोग ना टाल, दिखा दे मुख लाल का…
ओ मैया दिखा दे मुख लाल का…"
"तेरे भरे रहेंगे भंडार, दिखा दे मुख लाल का…
ओ मैया दिखा दे मुख लाल का…"
मैया यशोदा उस समय श्री श्यामसुंदर को नहला धुला कर उनका श्रृंगार करने में व्यस्त थी और बाहर खड़े योगी की आवाज़ न सुन पायी...
योगी भेषधारी शिव भोले ने फिर से आवाज़ लगाई.... लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया...तभी वहाँ से एक ब्रज की वृद्धा गोपी गुजर रही थी….उसने उस योगी को प्रतीक्षारत देखा तो उनके पास गयी...और इस प्रकार कहने लगी…
गोपी : "बाबा....किसे बुला रहे हों? "
योगी : "गृहस्वामिनी को माई "
गोपी : "भिक्षा चाहिए ?"
योगी : " हाँ! माई"
गोपी : "यहाँ तो कोई नहीं दिखता, चलो मेरे घर....वहाँ तुम्हे भिक्षा मिल जाएगी....मैं तुम्हे भिक्षा दूंगी"
योगी : "तुम! माई?"
गोपी : "हाँ! अन्न, वस्त्र , धन...तुम जो मांगोगे वही दूंगी"
योगी : "नहीं माई, मेरा एक नियम है, कि मैं एक ही द्वार पर जाकर अलख जगाता हूँ....और यदि उस द्वार से कुछ मिल जाये तो अच्छा है....अन्यथा उस दिन किसी दुसरे द्वार पर नहीं जाता"
गोपी : "हे भगवान् ! तो फिर भूखे ही रहोगे?"
योगी : "हाँ! माई, जैसी प्रभु की इच्छा"
गोपी : "नहीं नहीं बाबा , हमारे गाँव से कोई साधु भूखा चला जाये तो यह सारे गोकुल के लिए लज्जा की बात बन जाये….बाबा तुम यहीं ठहरो….मैं अंदर जाकर देखती हूँ , कि यशोदा रानी कहाँ हैं…."
ऐसा कह वह वृद्धा गोपी नन्दभवन के अंदर चल जाती हैं और देखती है की मैया यशोदा तो श्यामसुंदर का श्रृंगार कर रही थी और उन्हें लोरी गा कर सुला रही थी…
और इधर बाहर खड़े योगी भेषधारी भगवान शंकर ने मन ही मन कहा… ”प्रभु, दर्शन किये बैगैर तो नहीं जाऊँगा”
गोपी अंदर जाकर मैया यशोदा से कहती हैं : "ओ यशोदा रानी”
मैया यशोदा : "आओ काकी, क्या बात है?"
गोपी : "यशोदा रानी....तेरे द्वार पर एक योगी कब से भिक्षा के लिए खड़ा है….तुने उसकी आवाज़ नहीं सुनी क्या?"
मैया यशोदा : "नहीं तो"
गोपी : "अरी जल्दी से उसे भिक्षा दे दे… कोई बड़ा महात्मा लगता है"
मैया यशोदा : "अच्छा"
गोपी : "ऐसा योगी मैंने कभी नहीं देखा…उसके मुख पर तो आँख ही नहीं टिकती"
मैया यशोदा : "क्यों ?"
गोपी : " अरी! इतना तेज है उसके ललाट पर कि जैसे सूर्य का तेज होता है….और देखो कितना कड़ा नियम है उसका....जिस द्वार पर भिक्षा के लिए खड़ा हो जाता है बस वही से भिक्षा लेता है…और भिक्षा न मिलने पर भूखा ही लौट जाता है"
मैया यशोदा : "काकी.... आटा, चावल, दाल, गुड, घी ये सब कुछ ले लिया है…दो चार दिन के लिए प्रयाप्त होगा....अब चलो"
गोपी : "अरी! दक्षिणा के लिए कुछ धन भी ले ले…बड़े दिव्य मूर्ति हैं....उसे प्रसन्न कर ले, आशीर्वाद पायेगी"
मैया यशोदा : " ओह! दक्षिणा तो मैं भूल ही गयी अभी लाती हूँ"
फिर मैया यशोदा संदूक से धन और एक मोती की माला निकलते हुए कहती हैं : " काकी.... बड़ी दिव्यआत्मा है न....तो लो ये बहुमूल्य मोती की माला ही दे देती हूँ"
इधर बाहर शिव शंभु खड़े खड़े अपने ही मन ही मन में श्यामसुन्दर से इस तरह बाते कर रहे थे : ” प्रभु! दर्शन देने में इतना संकोच ? ”
श्यामसुंदर ने उनके अंतर्मन में कहा : "धन्य भाग्य, जो आप स्वयं अपने सेवक के घर पधारे....सेवक का प्रणाम स्वीकार करे"
योगी भेषधारी शिव शंभु : " कौन सेवक हैं और कौन प्रभु.... इसके निर्णय का ये समय नहीं है…आप तो हमे, अपना परम भक्त जान कर अपने बाल रूप के दर्शन करा दीजिये बस"
श्यामसुंदर ने फिर से कहा : “बाल रूप तो इस समय मैया यशोदा के पास गिरवी रखा है....उन्ही से मांगना पड़ेगा…आहा ! लीजिये, मैया आ गयी"
मैया यशोदा श्यामसुंदर को पालने में सुलाकर और दक्षिणा की थाल लेकर उस वृद्धा गोपी के साथ नन्दभवन के बाहर आती है, जहा योगी भेष में शिव शंभु प्रतीक्षा कर रहे थे.....मैया यशोदा ने योगी भेषधरी शिव शंभु को प्रणाम करते हुए कहने लगी"
मैया यशोदा : "विलम्ब के लिए क्षमा करे बाबा.... मैं अपने लल्ला के श्रृंगार में व्यस्त थी"
योगी भेषधारी शिव शंभु : "धन्य हो तुम मैया....जिसने ऐसे दिव्य बालक की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ....माता मुझे भी उस परम दिव्य शिशु के दर्शन करवा दो"
मैया यशोदा: "क्षमा करे बाबा...अभी अभी नहलाया है उसे...इस समय मैं उसे बाहर नहीं ला सकती....ठंडी हवा लग जाएगी"
योगी भेषधारी शिव शंभु : "मैया, हवाओं का चलना न चलना, जिसके संकल्प मात्र पर निर्भर है, उसके लिए व्यर्थ की शंका मत करो…उसे एक बार मेरे पास लेकर आओ....उसके दर्शनों की लालसा में ही मैं तेरे द्वार पर आया हूँ"
मैया यशोदा : "नहीं योगी बाबा...मैं उसे बाहर नहीं ला सकती इसलिए.....अब यह भिक्षा ग्रहण कीजिये और मुझे क्षमा कीजिये"
योगी भेषधारी शिव शंभु भिक्षा की उस थाल को देख कर इस प्रकार मैया यशोदा से कहने लगे : "मैया! ये मोती माणक, धन तो मेरे लिए पत्थर के टुकड़े है ...मेरे किस काम के? मुझे इनका लोभ नहीं, चाहो तो ऐसे हीरे, मोती, माणक मुझसे ले लो...पर मुझे तेरे लल्ला का दर्शन करवा दो, वही हमारी भिक्षा है"
फिर योगी भेषधारी भगवान् शंकर ने अपने कमंडल से हीरे मोती निकाल कर मैया यशोदा जी के भिक्षा की थाल में रख दिए…. जिसे देख मैया यशोदा आश्चर्य चकित और चिंतित हो उस वृद्ध गोपी से कहने लगी...
मैया यशोदा : "काकी....ये कोई असली साधु नहीं….कोई मायावी है"
और वो वृद्धा गोपी मूक खड़ी यशोदा मैया का करुण चेहरा देखती रही...
फिर मैया यशोदा अपने आँखों में अश्रु भर के योगी भेषधारी शिव शंभु से इसप्रकार कहने लगी : "देखो योगी बाबा....तुम जैसे कई मायावी इससे पहले भी आ चुके है.. सभी इसी प्रकार की चिकनी चुपरी बाते करते है….तेरा लाल तो बड़ा दिव्य बालक है....उसका दर्शन करा दे....उसे मेरी गोद में दे दे...और फिर सब के सब उसका अनिष्ट करने की चेष्टा करते है....मेरे लाल ने आप लोगो का क्या बिगाड़ा है...जो आप लोग उसके शत्रु बन गए"
और फिर बहुत ही कड़े शब्दों में मैया यशोदा ने कहा : "भिक्षा चाहिए तो लीजिये, अन्यथा अपने स्थान को पधारिये...मैं अपने लल्ला को बाहर नहीं लाऊंगी"
योगी भेषधारी शिव शंभु : "ओ मैया! ऐसे कठोर मत बनो...मैं बहुत दूर कैलाश पर्वत से आया हूँ"
मैया यशोदा फिर कठोर शब्दों में बोली : "कैलाश में थे, तो वहीँ भगवान शिव के साक्षात् दर्शन कर लिए होते ....यहाँ क्या काम है?"
योगी भेषधारी शिव शंभु : "भोली मैया! भगवन के साक्षात् दर्शन करना तो कोई कठिन कार्य नहीं हैं.....परन्तु उनके बाल स्वरुप के दर्शन करना अत्यंत दुर्लभ हैं ..उसी की लालसा में मैं तेरे द्वार पर आया हूँ…कई युगों के पश्चात् ही यह दर्शन मिलते है.."
मैया यशोदा : "नहीं नहीं योगी बाबा...मुझे क्षमा करो..मैं उसे बाहर नहीं लाऊंगी…मेरे पति की आज्ञा है, कि किसी भी अनजान व्यक्ति के सामने अपने लल्ला को मत लाना"
मैया यशोदा को इस प्रकार अपने फैसले पर अडिग देख भगवान् श्यामसुंदर ने श्री योगमाया को पूरनमासी भुआ ( पूरनमासी भुआ...जो कि स्वयं भगवती योगमाया हैं....भगवान के जनम के पूर्व से ही गोकुल में आ गयी थी ) के रूप में उस स्थान पर भेजा...जहाँ पर यह वाद-विवाद चल रहा था.
पूरनमासी भुआ : "ये अनजान व्यक्ति नहीं हैं यशोदा रानी...ये अनजान व्यक्ति नहीं हैं....मैं इन्हें अच्छी प्रकार से जानती हूँ…मैंने कहा था न कि गोकुल में आने के पहले मैं काशी में रहती थी…वही इनके दर्शन किये थे…हाँ, ये सचमुच परम दिव्य शक्ति हैं.....शक्ति पति हैं ये.....शक्ति पति हैं ये…."
ऐसा कहते हुए पूरनमासी भुआ....आँखों में अश्रु की धार लिए भगवान् शिव के चरणों में अपना शीश रख उन्हें प्रणाम करती हैं… और उठ कर मैया यशोदा से इसप्रकार कहती है : "यशोदा! इन्हें लल्ला के दर्शन करा दे....यशोदा रानी....इन्हें लल्ला के दर्शन करा दे....इनका आशीर्वाद पाकर तेरा लल्ला भी बड़ा प्रसन्न हो जायेगा"
मैया यशोदा विस्मृत सी मुद्रा में पूरनमासी भुआ से बोली : " पूरनमासी भुआ! क्या तुम सच कह रही हो? तुम इन्हें जानती हो?"
पूरनमासी भुआ : "हाँ री , यशोदा रानी! मैं इन्हें भली-भाँति जानती हूँ….अरी! यह तो तेरा सौभाग्य है जो तेरे लल्ला का प्रेम इन्हें तेरे द्वार पर ले आया"
मैया यशोदा : "परन्तु....इनकी भेष-भूषा तो देखिये…लम्बी लम्बी जटाए....बदन में भभूत और गले में सर्पों की माला लगाये हुए है… लल्ला तो इनको देख कर वैसे ही डर जाएगा....ना बाबा ना…मैं लल्ला को नहीं लाऊंगी"
बिचारी भोली भाली मैया को क्या पता की उनके द्वार पर स्वयं भगवान सदाशिव पधारे हैं...
मैया यशोदा से ऐसा सुन पूरनमासी भुआ ने कहा : "नहीं यशोदा रानी…इनके दर्शन मात्र से ही समस्त भयों का नाश हो जाता है....समस्त बाधाये दूर हो जाती हैं...मुझपर विश्वास करो....मैं कभी तुमसे झूठ नहीं बोली"
फिर वो वृद्धा गोपी ने पूरनमासी भुआ का समर्थन करते हुए कहा : " अरी! यशोदा रानी, ये पूरनमासी भुआ कभी झूठ नहीं बोलती…यशोदा रानी याद है तुम्हे …जब वो पहले पहले गोकुल में आई थी तब इसी ने तुझे आशीर्वाद दिया था ना कि तुम्हे भी लल्ला होगा... उस समय तुम सब लोग तो आशा छोड़ चुके थे…ये सदा सच कहती है.. सो इसकी बात मान ले बेटी"
पूरनमासी भुआ : "जा बेटी जा, लल्ला को ले आ"
मैया यशोदा : "पर मैं लल्ला को इनके हाथ में नहीं दूंगी"
पूरनमासी भुआ : " अच्छा लल्ला को तो ले आ....ये दूर से ही आशीर्वाद दे देंगे.…जा जा ले आ लल्ला को यशोदा बेटी"
फिर मैया यशोदा नन्दभवन के अन्दर जाती हैं, श्यामसुंदर को लाने के लिए…और अंदर जाकर श्यामसुंदर को अपनी गोद में उठा इस प्रकार कहती है : “ अरे ओ लल्ला...चल कोई तेरे दर्शन के लिए आये हैं…चल…"
ऐसा कह मैया यशोदा श्यामसुंदर को बाहर ले आती हैं.…जिसे देख, योगी भेषधारी शिव शंभु प्रेम से गद गद हो, श्यामसुंदर के बाल स्वरुप को टकटकी लगाये निहारने लगे....जैसे पूर्णिमा की रात को चकोर चाँद को टकटकी लगाये निहारते रहता है…
इसी बीच मैया यशोदा कहती है : "लो योगी बाबा....लल्ला को देख लो, और आशीर्वाद दे दो"
भगवान् शिव शम्बू अपने प्रिय श्यामसुंदर के इस बाल स्वरुप को देख उन्हें नमस्कार करते हैं....और श्यामसुंदर भी चेहरे पर मधुर मधुर मुस्कान लिए उन्हें देखते रहते हैं....और फिर शिव शंभु मैया यशोदा से इस प्रकार कहते हैं...
योगी भेषधारी शिव शंभु : "मैया! आज्ञा हो तो इनके चरणों में अपना मस्तक रख लू?"
मैया यशोदा : "नहीं नहीं! मैं मेरे लल्ला को छुने नहीं दूंगी"
फिर पूरनमासी भुआ योगी भेषधारी शिव शंभु से कहती है : "पहले अपनी चरण रज तो दीजिये"
ऐसा कह पूरनमासी भुआ, शिव शंभु की चरण रज ले लल्ला श्यामसुंदर के ललाट पर लगा देती है....
शिव शंभु की चरण रज श्यामसुंदर के ललाट में पड़ते ही....श्यामसुंदर मन ही मन में शिव शंभु से कहते है : "धन्यवाद प्रभु ! कोटिशः धन्यवाद"
अंतर्यामी भगवान् शिव, श्यामसुंदर की मन की बात को सुनकर इस प्रकार कहते है : “ ये कहाँ का न्याय है स्वामी ....कि हम इतनी दूर से आकर भी आपके बाल रूप का आलिंगन भी ना कर सके? जिन श्री चरणों से निकली पवित्र गंगा को हम अपने शीश पर धारण करते हैं...उन श्री चरणों को एक बार तो छु लेने दीजिये प्रभु?
और फिर भगवान शिव शंभु अपने ही शरीर के एक अदृश्य प्रतिबिम्ब से श्री श्यामसुंदर के चरणों का स्पर्श करते हैं….और उनकी स्तुति पुरुषसूक्त से करते हैं...जो कि भगवान श्री श्यामसुंदर को अति प्रिय हैं...
उसके बाद योगी भेषधारी शिव शंभु मैया यशोदा से झूम झूम के नाच नाच कर कहते है : "युग युग जीये तेरो लल्ला...ओ मैया…युग युग जीये...."
"मेरे नयना भये रे निहाल, निरख मुख लाल का…
प्यासी अँखियाँ हुई रे निहाल, निरख मुख लाल का…"
फिर मैया यशोदा कहती हैं : " योगी बाबा अपनी भिक्षा तो लेते जाएये"
महादेव शिव शंभु ने झूमते हुए गाते हुए कहा :
"रख ले हीरे मोती तेरे, ये पत्थर किस काम के मेरे...
योगी हो गया माला माल, निरख मुख लाल का…
मैं तो हो गया माला माल, निरख मुख लाल का…"
ऐसा कहते ही…योगी भेषधारी शिव शंभु वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं…
ऐसा अनुपम दृश्य देख स्वर्ग लोक से समस्त देवी देवता प्रसन्न हो पुष्प की वर्षा करने लगते हैं.....
ऐसे ही है हमारे प्यारे श्यामसुंदर जी.....सबका मन मोहने वाले......हमारे प्रिय श्री धाम वृन्दावन के श्री श्यामसुंदर जी के श्री विग्रह का यह अद्भुत योगी भेष हमें इसी दिव्य कथा कि स्मृति कराता हैं...
!! जय जय योगी भेष धारी श्री श्याम सुन्दर जी !!
!! जय जय महादेव शिव शंभु जी !!