मर्यादा पुरषोतम भगवान श्री राम स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं... श्री विष्णु ने श्री राम का अवतार, इस वसुंधरा पर दुष्ट,पापी निशाचर रावण जिसने तीनो लोको में अपने पापाचार से हाहाकार मचा रखा था, उसका संहार करने के लिए लिया था.....
श्री राम एक आदर्श पुत्र हैं....पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि है... पति के रूप में श्री राम ने सदैव एक पत्नीव्रत का पालन किया...राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं....विलक्षण व्यक्तित्व है उनका....वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं....
आइये उन्ही भगवान श्री राम के इस श्री चरित्र को इन 108 पंक्तियो की कव्यवली के माध्यम से पढ़ते हैं और गाते हैं......जो स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित हैं...
!! श्री श्री राम चरित्र !!
रघुपति राघव राजाराम। पतित पावन सीताराम॥
जय रघुनन्दन जय घनश्याम। पतित पावन सीताराम॥
भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे। दूर करो प्रभु दु:ख हमारे॥
दशरथ के घर जन्में राम। पतित पावन सीताराम॥१॥
विश्वामित्र मुनीश्वर आए। दशरथ भूप से वचन सुनाये।
संग में भेजे लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम॥२॥
वन में जाय ताड़का मारी। चरण छुआय अहिल्या तारी॥
ऋषियों के दु:ख हरते राम। पतित पावन सीताराम॥३॥
जनकपुरी रघुनन्दन आए। नगर निवासी दर्शन पाए॥
सीता के मन भाये राम। पतित पावन सीताराम॥४॥
रघुनन्दन ने धनुष चढाया। सब राजों का मान घटाया॥
सीता ने वर पाये राम। पतित पावन सीताराम॥५॥
परशुराम क्रोधित हो आए। दुष्ट भूप मन में हरषाये॥
जनकराय ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥६॥
बोले लखन सुनो मुनि ज्ञानी। संत नहीं होते अभिमानी॥
मीठी वाणी बोले राम। पतित पावन सीताराम॥७॥
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो। जो कुछ दण्ड दास को दीजो॥
धनुष तुडइय्या मैं हूँ राम। पतित पावन सीताराम॥८॥
लेकर के यह धनुष चढाओ। अपनी शक्ति मुझे दिखाओ॥
छूवत चाप चढाये राम। पतित पावन सीताराम॥९॥
हुई उर्मिला लखन की नारी। श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी॥
हुई मांडवी भरत के वाम। पतित पावन सीताराम॥१०॥
अवधपुरी रघुनन्दन आए। घर-घर नारी मंगल गए॥
बारह वर्ष बिताये राम। पतित पावन सीताराम॥११॥
गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी। राजतिलक तैयारी कीनी॥
कल को होंगे राजा राम। पतित पावन सीताराम॥१२॥
कुटिल मंथरा ने बहकायी। केकैई ने यह बात सुनाई॥
दे दो मेरे दो वरदान। पतित पावन सीताराम॥१३॥
मेरी विनती तुम सुन लीजो। पुत्र भरत को गद्दी दीजो॥
होत प्रात: वन भेजो राम। पतित पावन सीताराम॥१४॥
धरनी गिरे भूप तत्काल। लागा दिल में शूल विशाल॥
तब सुमंत बुलवाये राम। पतित पावन सीताराम॥१५॥
राम, पिता को शीश नवाये। मुख से वचन कहा नहिं जाये॥
केकैयी वचन सुनायो राम। पतित पावन सीताराम॥१६॥
राजा के तुम प्राण प्यारे। इनके दुःख हरोगे सारे॥
अब तुम वन में जाओ राम। पतित पावन सीताराम॥१७॥
वन में चौदह वर्ष बिताओ। रघुकुल रीति नीति अपनाओ॥
आगे इच्छा तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम॥१८॥
सुनत वचन राघव हर्षाये। माता जी के मन्दिर आए॥
चरण-कमल में किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥१९॥
माता जी मैं तो वन जाऊँ। चौदह वर्ष बाद फिर आऊं॥
चरण कमल देखूं सुख धाम। पतित पावन सीताराम॥२०॥
सुनी शूल सम जब यह बानी। भू पर गिरी कौशल्या रानी।
धीरज बंधा रहे श्री राम। पतित पावन सीताराम॥२१॥
समाचार सुनी लक्ष्मण आए। धनुष-बाण संग परम सुहाए॥
बोले संग चलूँगा राम। पतित पावन सीताराम॥ २२॥
सीताजी जब यह सुध पाईं। रंगमहल से निचे आईं॥
कौशल्या को किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥ २३॥
मेरी चूक क्षमा कर दीजो। वन जाने की आज्ञा दीजो॥
सीता को समझाते राम। पतित पावन सीताराम॥२४॥
मेरी सीख सिया सुन लीजो। सास ससुर की सेवा कीजो॥
मुझको भी होगा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥ २५॥
मेरा दोष बता प्रभु दीजो। संग मुझे सेवा में लीजो॥
अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम। पतित पावन सीताराम॥ २६॥
राम लखन मिथिलेश कुमारी। बन जाने की करी तैयारी॥
रथ में बैठ गए सुख धाम। पतित पावन सीताराम॥ २७॥
अवधपुरी के सब नर-नारी। समाचार सुन व्याकुल भारी॥
मचा अवध में अति कोहराम। पतित पावन सीताराम॥२८॥
श्रृंगवेरपुर रघुबर आए। रथ को अवधपुरी लौटाए॥
गंगा तट पर आए राम। पतित पावन सीताराम॥ २९॥
केवट कहे चरण धुलवाओ। पीछे नौका में चढ़ जाओ॥
पत्थर कर दी नारी राम। पतित पावन सीताराम॥३०॥
लाया एक कठौता पानी। चरण-कमल धोये सुखमानी॥
नाव चढाये लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम॥३१॥
उतराई में मुंदरी दीन्हीं। केवट ने यह विनती कीन्हीं॥
उतराई नहीं लूँगा राम। पतित पावन सीताराम॥३२॥
तुम आए हम घाट उतारे। हम आयेंगे घाट तुम्हारे॥
तब तुम पार लगाओ राम। पतित पावन सीताराम॥३३॥
भारद्वाज आश्रम पर आए। राम लखन ने शीष नवाए॥
एक रात कीन्हा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥३४॥
भाई भरत अयोध्या आए। केकैई को यह वचन सुनाए॥
क्यों तुमने वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम॥३५॥
चित्रकूट रघुनन्दन आए। वन को देख सिया सुख पाये॥
मिले भरत से भाई राम। पतित पावन सीताराम॥३६॥
अवधपुरी को चलिए भाई। ये सब केकैई की कुटिलाई॥
तनिक दोष नहीं मेरा राम। पतित पावन सीताराम॥३७॥
चरण पादुका तुम ले जाओ। पूजा कर दर्शन फल पाओ॥
भरत को कंठ लगाए राम। पतित पावन सीताराम॥ ३८॥
आगे चले राम रघुराया। निशाचरों का वंश मिटाया॥
ऋषियों के हुए पूरन काम। पतित पावन सीताराम॥ ३९॥
मुनिस्थान आए रघुराई। शूर्पणखा की नाक कटाई॥
खरदूषन को मारे राम।पतित पावन सीताराम॥ ४०॥
पंचवटी रघुनन्दन आए। कनक मृग 'मारीच' संग धाये॥
लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम। पतित पावन सीताराम॥ ४१॥
रावन साधु वेष में आया। भूख ने मुझको बहुत सताया॥
भिक्षा दो यह धर्म का काम। पतित पावन सीताराम॥ ४२॥
भिक्षा लेकर सीता आई। हाथ पकड़ रथ में बैठी॥
सूनी कुटिया देखी राम। पतित पावन सीताराम॥ ४३॥
धरनी गिरे राम रघुराई। सीता के बिन व्याकुलताई॥
हे प्रिय सीते, चीखे राम। पतित पावन सीता राम॥ ४४॥
लक्ष्मण, सीता छोड़ न आते। जनकदुलारी नहीं गवांते॥
तुमने सभी बिगाड़े काम। पतित पावन सीता राम॥ ४५॥
कोमल बदन सुहासिनी सीते। तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते॥
लगे चाँदनी जैसे घाम। पतित पावन सीता राम॥ ४६॥
सुन री मैना, सुन रे तोता॥ मैं भी पंखों वाला होता॥
वन वन लेता ढूंढ तमाम। पतित पावन सीता राम॥ ४७॥
सुन रे गुलाब, चमेली जूही। चम्पा मुझे बता दे तू ही॥
सीता कहाँ पुकारे राम। पतित पावन सीताराम॥ ४८॥
हे नाग सुनो मेरे मन हारी। कहीं देखी हो जनक दुलारी॥
तेरी जैसी चोटी श्याम। पतित पावन सीताराम॥४९॥
श्यामा हिरनी तू ही बता दे। जनक-नंदिनी मुझे मिला दे॥
तेरे जैसी आँखें श्याम। पतित पावन सीताराम॥५०॥
हे अशोक मम शोक मिटा दे। चंद्रमुखी से मुझे मिला दे॥
होगा तेरा सच्चा नाम। पतित पावन सीताराम॥५१॥
वन वन ढूंढ रहे रघुराई। जनकदुलारी कहीं न पाई॥
गिद्धराज ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥५२॥
चखचख कर फल शबरी लाई। प्रेम सहित पाये रघुराई॥
ऐसे मीठे नहीं हैं आम। पतित पावन सीताराम॥५३॥
विप्र रूप धरि हनुमत आए। चरण-कमल में शीश नवाए॥
कंधे पर बैठाये राम। पतित पावन सीताराम॥५४॥
सुग्रीव से करी मिताई। अपनी सारी कथा सुनाई॥
बाली पहुँचाया निज धाम। पतित पावन सीताराम॥५५॥
सिंहासन सुग्रीव बिठाया। मन में वह अति ही हर्षाया॥
वर्षा ऋतु आई हे राम। पतित पावन सीताराम॥५६॥
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ। वानरपति को यूँ समझाओ॥
सीता बिन व्याकुल हैं राम। पतित पावन सीताराम॥५७॥
देश-देश वानर भिजवाए। सागर के तट पर सब आए॥
सहते भूख, प्यास और घाम। पतित पावन सीताराम॥५८॥
सम्पाती ने पता बताया। सीता को रावण ले आया॥
सागर कूद गये हनुमान। पतित पावन सीताराम॥5९॥
कोने-कोने पता लगाया। भगत विभीषण का घर पाया॥
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥६०॥
हनुमत अशोक वाटिका आए। वृक्ष तले सीता को पाए॥
आँसू बरसे आठों याम। पतित पावन सीताराम॥६१॥
रावण संग निशाचरी लाके। सीता को बोला समझा के॥
मेरी और तो देखो बाम। पतित पावन सीताराम॥६२॥
मंदोदरी बना दूँ दासी। सब सेवा में लंकावासी॥
करो भवन चलकर विश्राम। पतित पावन सीताराम॥६३॥
चाहे मस्तक कटे हमारा। मैं देखूं न बदन तुम्हारा॥
मेरे तन-मन-धन हैं राम। पतित पावन सीताराम॥६४॥
ऊपर से मुद्रिका गिराई। सीता जी ने कंठ लगाई॥
हनुमान ने किया प्रणाम। पतित पावन सीताराम॥६५॥
मुझको भेजा है रघुराया। सागर कूद यहाँ मैं आया॥
मैं हूँ राम-दास हनुमान॥ पतित पावन सीताराम॥६६॥
माता की आज्ञा मैं पाऊँ। भूख लगी मीठे फल खाऊँ॥
पीछे मैं लूँगा विश्राम। पतित पावन सीताराम॥६७॥
वृक्षों को मत हाथ लगाना। भूमि गिरे मधुर फल खाना॥
निशाचरों का है यह धाम। पतित पावन सीताराम॥६८॥
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े। देख-देख माली ललकारे॥
मार-मार पहुंचाए धाम। पतित पावन सीताराम॥६९॥
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुँचाया। इन्द्रजीत फाँसी ले आया॥
ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान। पतित पावन सीताराम॥ ७०॥
सीता को तुम लौटा दीजो। प्रभु से क्षमा याचना कीजो॥
तीन लोक के स्वामी राम। पतित पावन सीताराम॥ ७१॥
भगत विभीषन ने समझाया। रावण ने उसको धमकाया॥
सम्मुख देख रहे हनुमान। पतित पावन सीताराम॥ ७२॥
रुई, तेल, घृत, बसन मंगाई। पूँछ बाँध कर आग लगाई॥
पूँछ घुमाई है हनुमान। पतित पावन सीताराम॥ ७३॥
सब लंका में आग लगाई। सागर में जा पूँछ बुझाई॥
ह्रदय-कमल में राखे राम। पतित पावन सीताराम॥ ७४॥
सागर कूद लौटकर आए। समाचार रघुवर ने पाए।
जो माँगा सो दिया इनाम। पतित पावन सीताराम॥ ७५॥
वानर रीछ संग में लाए। लक्ष्मण सहित सिन्धु तट आए॥
लगे सुखाने सागर राम। पतित पावन सीताराम॥ ७६॥
सेतु कपि नल नील बनावें। राम राम लिख शिला तैरावें।
लंका पहुँचे राजा राम। पतित पावन सीताराम॥ ७७॥
निशाचरों की सेना आई। गरज तरज कर हुई लड़ाई॥
वानर बोले जय सियाराम पतित पावन सीताराम॥ ७८॥
इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई। धरनी गिरे लखन मुरछाई।
चिंता करके रोये राम। पतित पावन सीताराम॥ ७९॥
जब मैं अवधपुरी से आया। हाय! पिता ने प्राण गंवाया॥
वन में गई चुराई वाम। पतित पावन सीताराम॥ ८०॥
भाई, तुमने भी छिटकाया। जीवन में कुछ सुख नहीं पाया॥
सेना में भारी कोहराम। पतित पावन सीताराम॥ ८१॥
जो संजीवनी बूटी को लाये। तो भी जीवित हो जाए॥
बूटी लायेगा हनुमान। पतित पावन सीताराम॥ ८२॥
जब बूटी का पता न पाया। पर्वत ही लेकर के आया॥
कालनेमि पहुँचाया धाम। पतित पावन सीताराम॥ ८३॥
भक्त भरत ने बाण चलाया। चोट लगी हनुमत लंग्दय॥
मुख से बोले जय सिया राम। पतित पावन सीताराम॥ ८४॥
बोले भरत बहुत पछता कर। पर्वत सहित बाण बिठा कर॥
तुम्हें मिला दूँ राजा राम । पतित पावन सीताराम॥ 85॥
बूटी लेकर हनुमत आया। लखन लाल उठ शीश नवाया।
हनुमत कंठ लगाये राम। पतित पावन सीता राम॥ ८६॥
कुम्भकरण उठ कर तब आया। एक बाण से उसे गिराया ॥
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम। पतित पावन सीता राम ॥८७॥
दुर्गा पूजा रावण कीनो॥ नौ दिन तक आहार न लीनो॥
आसन बैठ किया है ध्यान। पतित पावन सीता राम॥८८॥
रावण का व्रत खंडित किना। परम धाम पहुँचा ही दीना॥
वानर बोले जयसिया राम। पतित पावन सीता राम॥ ८९॥
सीता ने हरि दर्शन किना। चिंता-शोक सभी ताज दीना॥
हंसकर बोले राजाराम। पतित पावन सीता राम॥ ९०॥
पहले अग्नि परीक्षा कराओ। पीछे निकट हमारे आओ॥
तुम हो पति व्रता हे बाम। पतित पावन सीता राम॥ ९१॥
करी परीक्षा कंठ लगाई। सब वानर-सेना हरषाई॥
राज विभीष्ण दीन्हा राम। पतित पावन सीता राम॥ ९२॥
फिर पुष्पक विमान मंगवाया। सीता सहित बैठ रघुराया॥
किष्किन्धा को लौटे राम। पतित पावन सीता राम॥ ९३॥
ऋषि पत्नी दर्शन को आई। दीन्ही उनको सुन्दर्तई॥
गंगा-तट पर आए राम। पतित पावन सीता राम॥ ९४॥
नंदीग्राम पवनसूत आए। भगत भरत को वचन सुनाये॥
लंका से आए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥ ९५॥
कहो विप्र, तुम कहाँ से आए। ऐसे मीठे वचन सुनाये॥
मुझे मिला दो भैया राम। पतित पावन सीता राम॥९६॥
अवधपुरी रघुनन्दन आए। मन्दिर-मन्दिर मंगल छाये॥
माताओं को किया प्रणाम। पतित पावन सीता राम॥९७॥
भाई भरत को गले लगाया। सिंहासन बैठे रघुराया॥
जग ने कहा, हैं राजा राम। पतित पावन सीता राम॥९८॥
सब भूमि विप्रों को दीन्ही। विप्रों ने वापिस दे दीन्ही॥
हम तो भजन करेंगे राम। पतित पावन सीता राम॥९९॥
धोबी ने धोबन धमकाई। रामचंद्र ने यह सुन पाई॥
वन में सीता भेजी राम। पतित पावन सीता राम॥१००॥
बाल्मीकि आश्रम में आई। लव और कुश हुए दो भाई॥
धीर वीर ज्ञानी बलवान। पतित पावन सीता राम॥ १०१॥
अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम। सीता बिनु सब सुने काम।।
लव-कुश वहां लियो पहचान। पतित पावन सीता राम॥ १०२॥
सीता राम बिना अकुलाईँ। भूमि से यह विनय सुनाईं॥
मुझको अब दीजो विश्राम। पतित पावन सीता राम॥ १०३॥
सीता भूमि माई समाई। सुनकर चिंता करी रघुराई॥
उदासीन बन गए हैं राम। पतित पावन सीता राम॥ १०४॥
राम-राज्य में सब सुख पावें। प्रेम-मग्न हो हरि गुन गावें॥
चोरी चाकरी का नहीं काम। पतित पावन सीता राम॥ १०५॥
ग्यारह हज़ार वर्षः पर्यन्त। राज किन्ही श्री लक्ष्मीकंता॥
फिर बैकुंठ पधारे राम। पतित पावन सीता राम॥ १०६॥
अवधपुरी बैकुंठ सीधी। नर-नारी सबने गति पाई॥
शरणागत प्रतिपालक राम। पतित पावन सीता राम॥ १०७॥
'हरि भक्त' ने लीला गाई। मेरी विनय सुनो रघुराई॥
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम। पतित पावन सीता राम॥ १०८॥
यह माला पुरी हुयी मनका एक सौ आठ॥
मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ ॥
॥ हरि ॐ ॥
श्री रामचंद्र जी के संपूर्ण चरित्र को व्याखित करने वाले इन पदों को आप निम्नलिकित लिंक जो की चार भागो में हैं क्लिक कर सुन सकते हैं...
भाग : 1
भाग : 2
भाग : 3
भाग : 4
आइये सभी मिल सप्रेम श्री राम जी की स्तुति करते हैं....
!! श्री राम स्तुति !!
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।
नवकंज-लोचन कंज मुख, कर कंज, पद कंजारुणं ॥
कन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील-नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश-निकन्दनं।
रघुनन्द आनंद कंद कौशलचन्द दशरथ-नन्दनं॥
सिर मुकट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणं।
आजानु-भुज-सर-चाप-धर, संग्राम जित-खरदूषणं॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम ह्रदय कंज निवास कुरू, कामादि खलदल-गंजनं॥
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
!! दोहा !!
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे॥
श्री रामचंद्र जी की यह दिव्य स्तुति आप सभी निम्नलिखित लिंक पर क्लिक कर सुन सकते हैं....
हमारे प्रिय श्री धाम वृंदावन के श्री राधा श्यामसुंदर जी, मर्यादा पुरषोतम श्री रामचंद्र और भगवती सीता जी के रूप में...
मर्यादा पुरषोतम श्री रामचंद्र एवं श्री भगवती सीता के श्री चरणों में बारम्बार प्रणाम हैं....
सिया राम तुम्हारे चरणों में, यदि प्यार किसी का हो जाये....
दो-चार ही की तो बात ही क्या, संसार उसी का हो जाये....
सिया राम तुम्हारे चरणों में......
सबरी ने कहाँ पर वेद पढ़े, अहिल्या कब यज्ञ रचाई थी....
जिसके मन छल और द्वेष नहीं, भगवान उसी का हो जाये....
सिया राम तुम्हारे चरणों में.....
रावण ने राम से बैर किया, अब तक पापी कहलाता हैं....
बन भक्त विभीषण शरण गया, घर बार उसी का हो जाये....
सिया राम तुम्हारे चरणों में.....
प्रहलाद तो छोटा बालक था, पर प्रेम किया परमेश्वर से...
जीना उसका सार्थक है जो, एक बार प्रभु का हो जाये...
सिया राम तुम्हारे चरणों में.....
दुनिया के दीवानों शिक्षा लो, उस प्रेम दीवानी मीरा से....
जो प्रेम करे सिया रघुवर से, बेड़ा पार उसी का हो जाये...
सिया राम तुम्हारे चरणों में.....
सिया राम तुम्हारे चरणों में, यदि प्यार किसी का हो जाये....
दो-चार ही की तो बात ही क्या, संसार उसी का हो जाये....
सिया राम तुम्हारे चरणों में......
!! जय श्री सीता राम जी !!
!! जय श्री हनुमान जी !!
jaya shreeram.
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