!! ॐ !!


Sunday, August 28, 2011

!! हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना... !!



मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है, जो मन शुभ संकल्प और पवित्र कार्य करने से शुद्ध बनता है, निर्मल होता है और मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है, वही मन अशुभ संकल्प और पाप पूर्ण आचरण से अशुद्ध बनता है और संसार के बंधन में कसकर बाँध भी देता है... और जब मन अतिशुद्ध होता है, तभी अपने आराध्य अपने प्रभु से मिलन की तीव्र इच्छा जागृत होती है, इसलिए...


हे मेरे ह्रदय, हे मेरे मन !
तु मेरी बात ध्यान लगा कर सुन !!



गर श्याम से मिलना है, एक बात समझ लेना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...
गर श्याम से मिलना है, एक बात समझ लेना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



मीरा भी हारी थी, गिरधर को पाई थी...
विष अमृत कर पाया, मोहन को रिझाई थी...
नयनो में श्याम बसा, विषपान किया करना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



नरसी जब हारा था, साँवरिया आया था...
धर वेश सेठी ये का, क्या माल लुटाया था...
तारो से तार मिला, मन पीड़ा सुना देना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



एक मित्र सुदामा था, सर्वस्व अपना हारा...
इस मुरली मनोहर ने, अपना सबकुछ वारा...
तुम दीन-हीन बनकर, चरणों में रहा करना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



घनश्याम से प्रीत लगा, देखो भक्तवत्सल हारे...
हारी हुई बाजी को, मेरे श्याम जीता डारे...
कहे 'श्यामबहादुर' तु, दर पे दे दे धरना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



गर श्याम से मिलना है, एक बात समझ लेना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...
गर श्याम से मिलना है, एक बात समझ लेना...
हारे का वो साथी है, सदा हार के तु रहना...



!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी की !!



भजन : "श्री शिवचरण जी भीमराजका"

1 comment:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...