!! ॐ श्री श्याम देवाय नमः !!
आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख चुके हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं द्वारा भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं... और अपने नाम के अनुरूप ये कलयुग के अवतारी बाबा श्याम जी अपने समस्त भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते है... जो भी व्यक्ति राजस्थान के सीकर जिले में रींगस से १७ किलोमीटर की दुरी पर स्थित श्री खाटूश्याम जी में जाता है.... उसके जीवन के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं, और प्रभु के दर्शन मात्र से उसके जीवन में खुशियाँ एवं सुख शान्ति का भंडार भरना प्रारम्भ हो जाता है.... यह पावन धाम भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ३०० किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग ८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं...
आइये चले श्री श्यामधणी खाटूवाले की दिव्य पौराणिक प्रचलित पावन कथा का रसास्वादन करे...
महाभारत काल में पांडवरतन महाबली श्री भीमसेन व उनके के पुत्र वीर घटोत्कच से सभी लोग परिचित हैं... वीर घटोत्कच के शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जीतने पर, इनका विवाह प्रयागज्योतिषपुर ( वर्तमान आसाम ) के राजा मूर की पुत्री मौरवी से हुआ... माता मौरवी को कामकंटका नाम से भी जाना जाता है... वीर घटोत्कच व माता मौरवी को एक पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिसके बाल बब्बर शेर की तरह होने के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया... ये वही वीर बर्बरीक हैं जिन्हें आज हम खाटू के श्री श्याम, कलयुग के आवतार, श्याम सरकार, तीन बाणधारी, शीश के दानी, खाटू नरेश व अन्य अनगिनत नामों से जानते व मानते हैं...
बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्रीकृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल का साथी बनना बताया... वीर बर्बरीक ने वापस आकर समस्त अस्त्र-शस्त्र विद्या ज्ञान हासिल कर विजय नामक ब्राह्मण के यज्ञ को राक्षसों से बचाकर, उनका यज्ञ संपूर्ण कराया... विजय नाम के उस ब्राह्मण का यज्ञ संपूर्ण करवाने पर माँ भगवती नवदुर्गा वीर बर्बरीक से अति प्रसन्न हुई व उनके सम्मुख प्रकट होकर तीन बाण प्रदान किए जिससे तीनो लोको में विजय प्राप्त की जा सकती थी...
महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने पर वीर बर्बरीक ने अपनी माता के सन्मुख युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की... और तब इनकी माता मौरवी ने इन्हे युद्ध में भाग लेने की आज्ञा इस वचन के साथ दी की तुम युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ निभाओगे... जब वीर बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्रीकृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर वीर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो कौरवों की समाप्ति केवल १८ दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता...
वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया... वीर बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की...
महाभारत का युद्ध समाप्ति पर सभी पांडवो को यह घमंड हो गया कि, यह महाभारत का युद्ध केवल उनके पराक्रम से जीता गया है, तब भगवन श्री कृष्ण ने कहा कि, वीर बर्बरीक के शीश से पूछा जाये की उसने इस युद्ध में किसका पराक्रम देखा है.... तब वीर बर्बरीक के शीश ने पांडवो का मान मर्दन करते हुए उत्तर दिया की यह युद्ध केवल भगवान श्री कृष्ण की निति के कारण जीता गया.... और इस युद्ध में केवल भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता था व द्रौपदी चंडी का रूप धरकर दुष्टों का लहू पी रही थी... भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा व कलयुग का अवतारी बनने का आशीर्वाद प्रदान किया...
आज यह सच हम अपनी आखों से देख रहे हैं की उस युग के बर्बरीक आज के युग के श्री श्याम जी ही हैं... और कलयुग के समस्त प्राणी श्री श्याम जी के दर्शन मात्र से सुखी हो जाते हैं... उनके जीवन में खुशिओं और सम्पदाओ की बहार आने लगती है... और श्री खाटू श्याम जी को निरंतर भजने से प्राणी सब प्रकार के सुख पाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाता है...
!! लखदातर की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! तीन बाण धारी की जय !!
!! म्हारा श्यामधणी की जय !!
!! मोरवीनंदन बाबा श्याम की जय !!
ऐसे पराक्रमी, परम दयालु, दानवीर, हारे के सहारे, वीर बर्बरीक जी (जिन्हें अब हम सभी बाबा श्याम के नाम से जानते है), की पावन कथा हमारे पवित्र सनातन धर्म के वेदव्यास जी द्वारा रचित "स्कन्द पुराण" में भी वर्णित है... स्कन्द पुराण जिसे कि एक शतकोटि पुराण कहा गया है, और जो इक्यासी हजार श्लोकों से युक्त है, एवं इसमें सात खण्ड है...
पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, दूसरा वैष्णवखण्ड है, तीसरा ब्रह्मखण्ड है, चौथा काशीखण्ड एवं पांचवाँ अवन्तीखण्ड है, फिर क्रमश: नागर खण्ड एवं प्रभास खण्ड है...
वीरवर मोरवीनंदन श्री बर्बरीक जी का चरित्र स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक दिया हुआ है...
यह पुराण कलेवर की दृष्टि से सबसे बड़ा है, तथा इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के अनन्त उपदेश भरे हैं... इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति के सुन्दर विवेचन के साथ देवताओं, अनेकों वीर पुरुषो और साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं....आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियों के दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं...
आइये ऐसे वीर, पराक्रमी, दानी, हारे के सहारे बाबा श्याम की स्तुति "स्कन्दपुराण के कौमारिका खंड" में वर्णित उस आलौकिक स्त्रोत्र से करे, जिसे पढ़ने और सुनने मात्र से ही समस्त भयो का नाश हो जाता है, और श्री मौरवीनंदन बाबा श्याम की करुण कृपा प्राप्त होती है....
!! स्कन्दपुराणोक्त श्री श्याम देव स्त्रोत्र !!
जय जय चतुरशितिकोटिपरिवार सुर्यवर्चाभिधान यक्षराज
जय भूभारहरणप्रवृत लघुशाप प्राप्तनैऋतयोनिसम्भव जय कामकंटकटाकुक्षि राजहंस जय घटोत्कचानन्दवर्धन बर्बरीकाभिधान जय कृष्णोपदिष्ट श्रीगुप्तक्षेत्रदेवीसमाराधन प्राप्तातुलवीर्यं जय विजयसिद्धिदायक जय पिंगला-रेपलेंद्र-दुहद्रुहा नवकोटीश्वर पलाशिदावानल जय भुपालान्तरालेनागकन्या परिहारक जय श्रीभीममानमर्दन जय सकलकौरवसेनावधमुहूर्तप्रवृत जय श्रीकृष्ण वरलब्धसर्ववरप्रदानसामर्थ्य जय जय कलिकालवन्दित नमो नमस्ते पाहि पाहिती !! ११५ !!
अनेन य: सुहृदयं श्रावणेsभ्य्चर्य दर्शके ! वैशाखे च त्रयोदशयां कृष्णपक्षे द्विजोत्मा: शतदीपै पुरिकाभि: संस्तवेत्तस्य तुष्यति !! ११६ !!
!! उपरोक्त स्त्रोत्र का हिंदी भावार्थ !!
"हे! चौरासी कोटि परिवार वाले सूर्यवर्चस नाम के धनाध्यक्ष भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! पृथ्वी के भार को हटाने में उत्साही, तथा थोड़े से शाप पाने के कारण राक्षस नाम की देवयोनि में जन्म लेने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! कामकंटकटा (मोरवी) माता की कोख के राजहंस भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! घटोत्कच पिता के आनंद बढ़ाने वाले बर्बरीक जी के नाम से सुप्रसिद्ध देव! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! श्री कृष्णजी के उपदेश से श्री गुप्तक्षेत्र में देवियों की आराधना से अतुलित बल पाने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! विजय विप्र को सिद्धि दिलाने वाले वीर! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! पिंगला- रेपलेंद्र- दुहद्रुहा तथा नौ कोटि मांसभक्षी पलासी राक्षसों के जंगलरूपी समूह को अग्नि की भांति भस्म करने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! पृथ्वी और पाताल के बीच रास्ते में नाग कन्याओं का वरण प्रस्ताव ठुकराने वाले माहात्मन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! श्री भीमसेन के मान को मर्दन करने वाले भगवन्! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! कौरवों की सेना को दो घड़ी ( ४८ मिनट) में नाश कर देने वाले उत्साही महावीर! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! श्री कृष्ण भगवान के वरदान के द्वारा सब कामनाओं के पूर्ण करने का सामर्थ्य पाने वाले वीरवर! आपकी जय हो, जय हो..."
"हे! कलिकाल में सर्वत्र पूजित देव! आपको बारम्बार नमस्कार हैं, नमस्कार है, नमस्कार है..."
"हमारी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये" !! ११५ !!
"जो भक्त कृष्णपक्ष की श्रवणनक्षत्र युक्त अमावस्या (जो प्रायः फाल्गुन मास में आती है) के तेरहवे [१३वे] दिन अर्थात "फाल्गुन सुदी द्वादशी" के दिन तथा विशाखानक्षत्र युक्त अमावस्या (जो प्रायः कार्तिक मास में आती है) के तेरहवे [१३वे] दिन अर्थात "कार्तिक सुदी द्वादशी" के दिन अनेक तपे हुए अँगारों से सिकी हुई पुरिकाओ के चूर्ण (घृत, शक्करयुक्त चूरमा) से श्री श्याम जी की पूजा कर इस स्त्रोत्र से स्तुति करते है, उस पर श्री श्याम जी अति प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते है... " !! ११६ !!
!! ॐ श्री श्याम देवाय नमः !!
आइये अब सब मिलकर मोरवीनन्दन श्री श्यामधणी से प्रार्थना करे और प्रेमपूर्वक उनका जयकारा लगाए...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी, मोरवीनन्दन श्री श्याम बिहारी...
कलयुग अवतारी, भव भयहारी, जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
आये है दर पे, हम तो तुम्हारे...
दर्शन के प्यासे, नयन हमारे...
दे दर्शन प्यास, बढ़ा दो हमारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
आशा है मन में, विश्वास तुझ पर...
करोगे मेहर, श्याम आज हम पर...
आएगी बोलो, कब बारी हमारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी, मोरवीनन्दन श्री श्याम बिहारी...
कलयुग अवतारी, भव भयहारी, जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
नगमे सुनाएँ, या गीत जो गायें...
झूमें नाचें, तुझको रिझाए...
तेरी रजा में, रजा है हमारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
देगा तू गम, या खुशिया जो मुझको...
सहेंगे, कहेंगे न कुछ भी तुमको...
'टीकम' तो दास, तेरा दरबारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी, मोरवीनन्दन श्री श्याम बिहारी...
कलयुग अवतारी, भव भयहारी, जय हो तुम्हारी, जय हो तुम्हारी...
आप सभी श्री श्यामभक्त निम्नलिखित दोनो लिंक से श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी के श्री चरणों में अर्पित किये हुए मधुर भाव स्वरुप श्रद्धा सुमन का रसास्वादन कर सकते है...
!! लखदातर की जय !!
!! खाटू नरेश की जय !!
!! हारे के सहारे की जय !!
!! शीश के दानी की जय !!
!! तीन बाण धारी की जय !!
!! म्हारा श्यामधणी की जय !!
!! मोरवीनंदन बाबा श्याम की जय !!
मैंने इस ब्लॉग में स्कन्दपुराणोक्त श्री श्याम स्त्रोत्र का प्रकाशन श्री श्यामभक्त "श्री महावीर प्रसाद जी सराफ" की प्रेरणा से किया है... जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ... और उनको कोटिशः धन्यवाद देता हूँ...
!! जय श्री श्याम !!