!! ॐ !!


Monday, November 22, 2010

!! बीच लाल ब्रजचंद सुहाये, चुन ओर ब्रज गोप...!!



ब्रजवासी तें हरि की शोभा... !
बैन अधर छवि भये त्रिभंगी, सो वा ब्रजकी गोभा... !!


ब्रज बन धातु विचित्र मनोहर, गुंज पुंज अति सोहें...!
ब्रजमोरिन को पंख शीश पर ब्रज जुवती मन मोहें...!!


ब्रज-रजनी की लगति अल्कलपे, ब्रजद्रुम फल अरु माल... !
ब्रज गऊवन के पीछे आछे, आवत मद गज चाल...!!


बीच लाल ब्रजचंद सुहाये, चुन ओर ब्रज गोप...!
नगरिया परमेसुरहु की ब्रज तें बाढ़ी ओप...!!




!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी !!

भाव : "श्री सुरदास जी"

1 comment:

  1. बहुत सुंदर और भावपूर्ण स्तुति....

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