अक्सर ऐसा कहा जाता है, प्रेम आत्मा का दर्पण होता है... प्रेम की ताकत के आगे परम पिता परमेश्वर भी बेबस हो जाते है अर्थात प्रेम में वह शक्ति है, जिससे जीव भगवद स्वरुप का साक्षात्कार कर सकता है... प्रभु से प्रेम करने वाला भक्त संसार के किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होता... क्योंकि वह अपना तन-मन प्रभु को समर्पित कर चुका होता है...
मेरा तो ऐसा भी मानना है कि, प्रेम का भाव छिपाने से कतई छिपता नहीं है... प्रेम जिस हृदय में प्रकट होकर उमड़ता है उस को छिपाना उस हृदय के वश में भी नहीं होता है... और वह इसे छिपा भी नहीं पाता है... यदि वह मुख से प्रेम-प्रीत की कोई बात न बोल पाए तो उसके नेत्रों से प्रेम के पवित्र अश्रुओं की धारा निकल पड़ती है अर्थात् हृदय के प्रेम की बात नेत्रों से स्वत: ही प्रकट हो जाती है... और प्रभु मिलन को तरसता वो हृदय प्रेमाश्रुओं के साथ इस प्रकार अपने ईष्टदेव से अनुनय विनय करने लगता है...
मेरा तो ऐसा भी मानना है कि, प्रेम का भाव छिपाने से कतई छिपता नहीं है... प्रेम जिस हृदय में प्रकट होकर उमड़ता है उस को छिपाना उस हृदय के वश में भी नहीं होता है... और वह इसे छिपा भी नहीं पाता है... यदि वह मुख से प्रेम-प्रीत की कोई बात न बोल पाए तो उसके नेत्रों से प्रेम के पवित्र अश्रुओं की धारा निकल पड़ती है अर्थात् हृदय के प्रेम की बात नेत्रों से स्वत: ही प्रकट हो जाती है... और प्रभु मिलन को तरसता वो हृदय प्रेमाश्रुओं के साथ इस प्रकार अपने ईष्टदेव से अनुनय विनय करने लगता है...
इस मधुर भाव का रसास्वादन यहाँ करे...
आते नहीं क्यों घनश्याम, क्यों आप सताते हैं...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
आते नहीं क्यों घनश्याम, क्यों आप सताते हैं...
बैठे हैं राहों में, पलकों को बिछाये हम...
अब और न देर करो, हम तुमको बुलाते हैं...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
प्यासा है दिल मेरा, प्यासे हैं नयन मेरे...
तूं प्यास बुझादे श्याम, दे कर दर्शन तेरे...
दर्शन को हम तरसे, हमें क्यों तरसाते हैं...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
शीशा सा दिल है मेरा, पत्थर ना समझ लेना...
'टीकम' गर टूट गया, चरणों में तूं लेना...कण- कण में तूं है श्याम, ये तो दर्शाते है...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
आते नहीं क्यों घनश्याम, क्यों आप सताते हैं...
यादों में तेरे श्याम, हम नीर बहाते हैं...
आते नहीं क्यों घनश्याम, क्यों आप सताते है...
!! जय जय हो श्री यशोदानंदन घनश्याम जी !!
!! जय जय हो श्री मोरवीनंदन श्याम जी !!
!! जय हो समस्त भक्तवृंद के प्रेमाश्रुओं की !!
!! जय हो समस्त भक्तवृंद के श्रीहृदय में विराजित श्री श्यामसुन्दर की !!
भाव : "श्री महाबीर सराफ जी"
याद मे जब उनकी
ReplyDeleteहम नीर बहाते हैं
खुद वो भी तडपते हैं
और हमे भी तडपाते हैं
आहों मे असर हो तो
खुद दौडे आते हैं
फिर बाँह पकड कर के
सीने से लगाते हैं
अब इससे ज्यादा और क्या कहूं
वंदना दीदी, आपने अपने हृदय के इन भावो से सब कुछ कह दिया...
ReplyDeleteवास्तव में "आहो में असर हो तो खुद ही दौड़े आते है, और फिर बाँह पकड़ कर के सीने से लगाते है.."
प्यारे श्यामसुन्दर की कृपा आप पर नित निरंतर बरसाती रहे...
'soordas jyon kaari kamari chadhe na doojo rang'
ReplyDeleteshyam rang me rang deti hai baktibhav se otprot rachna.