आज इस अनुपम छवि को देख मेरे मन में यह बहुत पुराना सुना हुआ यह भाव सहसा ही उद्धृत हुआ है, जो की राजस्थानी भाषा में है... आइये हम सब इस सुन्दर दृश्य के साथ इस सुन्दर भाव का रसास्वादन करे...
आज श्री राधारानी जी बहुत ही सुन्दर श्रृंगार करके पानी लेने यमुना तट पे जाने के लिए तैयार होती है... उनके आलौकिक श्रृंगार को देख ऐसा लगता है.., कि साक्षात कोई चंद्रलोक की परी धरा पे खड़ी है, जिनके सुनहरी चुनर में मोतियों की लड़ी लगी चम चम चमक रही है... श्री राधा रानी ने गले में नौलखा हार, हाथो में रतन जडित चूड़िया धारण कर रखी है, माथे की बिंदी को देखने से ऐसा प्रतीत होता है, कि क्षितिज में सूरज उदय हो रहा हो, जिनके कमर की करधनी यह भरम पैदा करती हो जैसी कोई पर्वतमाला हो...
ऐसे अनुपम श्रृंगार में सज धज के जब श्री राधा रानी जब यमुना तट पे, हाथो में सोने के कलश लिये जाती है... तो रास्ते में एक निकुंज में उन्हें श्री श्यामसुन्दर जी मिल जाते है, जिन्हें देख वे शरमाती हुई, चंचल चितवन को घूँघट की ओट में लेकर मुड़ मुड़ के, श्री श्यामसुन्दर को निरख निरख कर प्रसन्न होती है...
चंद्रपरी से देखो लागे ह खड़ी, म्हारी राधारानी जी...
सोनलिया चुनर म चिमके मोती री लड़ी, म्हारी राधारानी की...
गल बिच सोहे जी, नवलख हारियो...
चुडलो रतन जड़ाव, मनरो मोहे जी...
माथे प बिंदली जी, ज्यूँ सूरज उगियो...
कमर कलोले री लूम मन भरमावे जी...
रुणझुण, रुणझुण बाजे पायलरी, म्हारी राधारानी की...
सोनलिया चुनर म चिमके मोती री लड़ी, म्हारी राधारानी की...
सज धज चाली जी, राधारानी पाणीरे...
सोने रो कलशो हाथ, घणो सुहावे जी...
रस्ते म मिल गया जी, श्यामसुन्दर जी लाड़ला...
घूँघटईये री ओट, राधा जी शरमावे जी...
निरख निरख खिले मन री कली, म्हारी राधा रानी की...
सोनलिया चुनर म चिमके मोती री लड़ी, म्हारी राधारानी की...
चंद्रपरी से देखो लागे ह खड़ी, म्हारी राधारानी जी...
सोनलिया चुनर म चिमके मोती री लड़ी, म्हारी राधारानी की...
!! जय जय श्री राधा श्यामसुन्दर जी !!
बहुत ही सुन्दर रचना . बधाई
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