!!!! यह पेज मेरे प्रिय श्री श्यामसुन्दर जी और श्री राधारानी जी के श्री चरणों में समर्पित हैं !!!!
This Page is Dedicated to the Lotus Feet of Shri Shyamsundar Ji and Shri Radharani Ji
वास्तव में मनुष्य गलतियों का पुतला होता है, हम मनुष्यों से जीवन में जाने अनजाने कई अपराध हो जाते है, और हमें इस बात पर विचार करना चाहिये कि अपना अपराध स्वीकार करना ह्रदय की दुर्बलता न होकर ह्रदय का आत्मबल होता है... जाने अनजाने में किये गए सभी अपराध बोध को स्वीकार कर हम अपने आराध्य, अपने प्रभु से सच्चे ह्रदय से क्षमा याचना करे तो प्रम सत्य धर्म का पालन होता है, मन का एक बोझ उतर जाता और मन को शांति मिलती है... एवं शांति प्राप्त होने पर मन स्थिर रहता है, और मन के स्थिर रहने से चरित्र निर्मल बनता है...
अतः स्वयं का दोष स्वीकार करना महत्त्व का लक्षण है, सभ्यता का प्रतिक है... दोष स्वीकार कर लेने से मनुष्य बोझ एवं अशांति रूपी महासागर से डूबने से बच जाता है.. आइये हम सब भी अपने आराध्य से करवद्ध हो अपने जाने अनजाने में किये गए अपराधों के लिये क्षमा याचना करे...
हे! प्रिय श्यामसुन्दर, हे मनमोहन...
सुनो श्यामसुन्दर! क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर! क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
गलती के पुतले इंसान है हम, भले है बुरे है तेरी संतान है हम...
गलती के पुतले इंसान है हम, भले है बुरे है तेरी संतान है हम...
दया के हो सागर, मैं जानता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
कश्ती को मेरी, साहिल नहीं है, तुम्हारे चरण के हम काबिल नहीं है...
कश्ती को मेरी, साहिल नहीं है, तुम्हारे चरण के हम काबिल नहीं है...
काबिल बनाओगे ये मानता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
'सूरज' की गलती को दिल पे न लेना, सजा जो भी चाहो श्याम हमें तुम देना...
भक्तो की गलती को दिल पे न लेना, सजा जो भी चाहो श्याम हमें तुम देना...
करुणानिधि हो तुम पहचानता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
सुनो श्यामसुन्दर क्षमा मांगता हूँ, हुई जो खतायें, उन्हें मानता हूँ...
आप सभी इस सुन्दर भाव को नीचे दिए गए लिंक पर क्लीक कर सुन भी सकते है..
मृत्यु एक अटल सत्य है...और यह निश्चित है, एवं यह भी सत्य है कि प्रभु भक्ति से ही मृत्यु सुधरती है...प्रभु का स्मरण हमारा मरण सुधरता है... श्री भगवान का नाम स्मरण करते हुए जो प्राण त्याग करे, उसे भगवान की प्राप्ति अवश्य होती है, ऐसा श्रीमद गीता जी में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है... इसलिए हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर, हे प्रिय मनमोहन, अब तो केवल इस ह्रदय की एकमात्र यही अभिलाषा शेष रह गयी है...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
तन श्याम नाम की चादर हो, जब गहरी नींद में सोया रहूँ...
कानो में मेरे गुंजित हो, कान्हा बस नाम तुम्हारा हो...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
रस्ते में तुम्हारा मंदिर हो, जब मंजिल को प्रस्थान करूँ...
चौखट पे तेरी मनमोहन, अंतिम प्रणाम हमारा हो...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
उस वक्त कन्हैया आ जाना, जब चिता पे जाके शयन करूँ...
मेरे मुख में तुलसी दल देना, इतना बस काम तुम्हारा हो...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
गर सेवा की मैंने तेरी, तो उसका ये उपहार मिले...
इस 'हर्ष' भगत का साँवरिये, नहीं आना कभी भी दुबारा हो...
इस तेरे भगत का साँवरिये, नहीं आना कभी भी दुबारा हो...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
जब छोड़ चलु इस दुनिया को, होठों पे नाम तुम्हारा हो...
चाहे स्वर्ग मिले या नर्क मिले, ह्रदय में वास तुम्हारा हो...
आप सभी प्यारे श्यामसुन्दर के श्री चरणों में समर्पित इस अतिसुन्दर भाव को नीचे दिए गए लिंक पर क्लीक कर सुन भी सकते है...
कभी कभी जब कोई प्रभु का प्रिय प्रेमी इन सांसारिक छल कपट आदि व्याधियो से पूर्ण रूप से त्रस्त हो जाता है तो वह अत्यंत ही व्याकुल होकर करुण ह्रदय से अपने प्रभु को पुकारता हुआ इस प्रकार अपने अंतर्मन के भाव को प्रभु के समक्ष प्रस्तुत करता है...
हे! प्रिय श्यामसुन्दर, हे प्रिय मनमोहन, हे प्रिय वंशीधर आज अपने सभी प्रेमियों को आखिर ये तो बता ही दो, कि अधरों पे ये जादुगारी वंशी धर किसको सुना रहे हो, और इन नयन कमलों के चितवन को नीचे कर किससे नजर चुराते हुए, इस वंशी की मधुर तान से किसे लुभा रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
इतना बता दे मोहन, किसको लुभा रहे हो...
इतना बता दे कान्हा, किसको लुभा रहे हो...
बनकर तेरा दीवाना, तेरी याद में विचरता...
तेरे लिए कन्हैया, ये दिल मेरा धड़कता...
अच्छा नहीं जो प्यारे, नजरें चुरा रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
हे मनमोहन...
एक बात पूछता हूँ, क्या मैं भी तुमको भाता...
गर प्रेम हो बराबर, फिर क्यूँ मुझे सताता...
इतना ही कह दे मुझको, क्यूँ जुल्म ढा रहे हो...
इतना बता दो मोहन, किसको लुभा रहे हो...
क्या तुम्हे पता भी है, कि...
नजदीक जो तू होता, आँसू मैं क्यूँ बहाता...
साये में तेरे मोहन, खुद को ही भूल जाता...
दर्दी जिगर पे क्यूँ कर, नस्तर चला रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
अरे! प्यारे...
तेरा रूप है निराला, तेरी शान है निराली...
ये बागवाँ है तेरा, और तू ही इसका माली...
'नंदू' दया दिखा दे, क्यूँ भाव खा रहे हो....
इतना बता दो मोहन, किसको लुभा रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
अधरों पे धर के वंशी, किसको सुना रहे हो...
इतना बता दे मोहन, किसको लुभा रहे हो...
इतना बता दे कान्हा, किसको लुभा रहे हो...
आप सभी इस सुमधुर भाव की कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गयी लिंक पर क्लीक कर सुन सकते है...
मेरा स्वयं का ऐसा मानना है, कि दुःखदायी परिस्थिति प्रभु के विधान से हमारे कल्याण के लिए ही आती है... अतः उसे हमें मिटाने की चेष्टा में तत्परता न दिखाते हुए शांतिपूर्वक भगवत भजन करते हुए सह लेना चाहिए... माता कुंती ने भी एक बार श्री कृष्ण से करवद्ध हो वरदान मांगते हुए यह कहा था, कि "हे कृष्ण, दे सकते हो तो मुझे सदा दुःख देना, ताकि इस संसार की आसक्ति को छोड़, तुममें हमारी आसक्ति सदैव बनी रहे, सुख दोगे तो हो सकता है, संभवतः हमे तुम्हे भूल भी जाये..."
इस संसार में आसक्ति की गलती में लिप्त, जब कभी भी हमें किसी सांसारिक दुःखदायी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, तो स्वभावतः हमारा मन भी व्याकुल हो उठता है, और अपने आप को हारा हुआ सा महसूस करने लगता है... परन्तु प्रभु में सच्ची श्रद्धा होने के कारण उस मन को समझने में देर नहीं लगती कि यह परिस्थिति भी प्रभु के विधान से हमारे कल्याण के लिए है, तो वह मन अपने इष्ट और अपने प्रभु से अपने आप को सबल बनाने, अंतर्मन में निहित समस्त दोषों को दूर करने एवं प्रभु के श्री चरणों के प्रति विश्वास को और दृढ करने हेतु इस प्रकार निश्चल ह्रदय से करवद्ध हो प्रार्थना करने लगता है...
भगवन्नाम की महिमा अमित है... अपने प्रिय का नाम जपते-जपते प्रेमी का मन अनेक प्रकार की भाव-तरंगों से अनुप्राणित हो उठता है... ऐसी ही एक भाव तरंग से परिपूर्ण एक प्रेमी का ह्रदय, अश्रुपूरित नेत्रो से अपने आराध्य के समक्ष करुण स्वर में यु कहता है...
वास्तव में मनुष्य जन्म ही सब जन्मो से सर्वोत्तम माना गया है, क्योकि प्रभु की कृपा से प्राप्त इस जीवन में ही मनुष्य श्री भगवान का शरणागत हो भगवद भजन कर प्रभु को प्राप्त कर सकता है... मनुष्य नाम उसी का है, जो प्रभु प्राप्ति का जन्म-जात अधिकारी हो... आइये हम सब भी उन्ही प्रभु की शरण में अपने शीश झुकाते हुये चले आये और अपने इस जीवन धन को धन्य करे...
साँवरे का ये दर, है बड़ा नामगर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
साँवरे का ये दर, है बड़ा नामगर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
जिनके दिल में कन्हैया की तस्वीर है, उनसे रूठी कभी भी ना तकदीर है...
जिनके दिल में कन्हैया की तस्वीर है, उनसे रूठी कभी भी ना तकदीर है...
साथ ये है अगर, क्यूँ करे हम फिकर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
इनके जैसा जहान में ना दूजा कोई, विष को अमृत बनाते है पल में यही...
इनके जैसा जहान में ना दूजा कोई, विष को अमृत बनाते है पल में यही...
आइये हारकर, जाइये जीतकर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
साँवरे का ये दर, है बड़ा नामगर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
सबसे रिश्ता निभाया है 'संजू' यहाँ, श्याम से भी तो रिश्ता निभा लीजिए...
श्याम कृपा से पाया है मानव जनम, कुछ समय तो शरण में बिता लीजिए...
बीती जाये उमर, फिर भी हैं बेखबर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
साँवरे का ये दर, है बड़ा नामगर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
साँवरे का ये दर, है बड़ा नामगर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
पड़ गयी गर नजर, जाइयेगा संवर, सिर झुकाये हुये बस चले आइये...
आप सभी इस सुन्दर भाव को नीचे दी गयी लिंक पर क्लीक कर सुन भी सकते है...
!! जय हो साँवरे सलोने प्रिय श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय हो साँवरे सलोने प्रिय श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय हो साँवरे सलोने प्रिय श्यामसुन्दर जी की !!
यह भाव "जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझा, नहीं कोई जाना नहीं" गीत के तर्ज़ पर आधारित है...
हे इष्टदेव, कुलदेव म्हारा श्यामधणी, थारे द्वार पे उभा थारा टाबरिया थां
सूँ या ही अरज करे ह... हे खाटू के श्याम प्रभु, मुझे दरस दिखा देना...मेरी
भूल क्षमा...