भगवन्नाम की महिमा अमित है... अपने प्रिय का नाम जपते-जपते प्रेमी का मन अनेक प्रकार की भाव-तरंगों से अनुप्राणित हो उठता है... ऐसी ही एक भाव तरंग से परिपूर्ण एक प्रेमी का ह्रदय, अश्रुपूरित नेत्रो से अपने आराध्य के समक्ष करुण स्वर में यु कहता है...
हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर, हे! मेरे मोहन...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
ये जीवन समर्पित, चरण में तुम्हारे...
ये जीवन समर्पित, चरण में तुम्हारे...
तुम्हीं मेरे सर्वश्व, तुम्ही प्राण प्यारे...
तुम्हे छोड़ कर नाथ, किससे कहूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
ना कोई उलाहना, ना कोई अरजी...
ना कोई उलाहना, ना कोई अरजी...
कर लो करा लो जो, है तेरी मरजी...
कहना भी होगा तो, मैं तुझसे कहूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
दयानाथ दयनीय, मेरी अवस्था...
दयानाथ दयनीय, मेरी अवस्था...
तेरे हाथों अब मेरी सारी व्यवस्था...
जो भी कहोगे तुम, वहीं मैं करूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ ले चलोगे, वहीं मैं चलूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
जहाँ नाथ रख लोगे, वहीं मैं रहूँगा...
!! जय हो श्री श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय हो श्री श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय हो श्री श्यामसुन्दर जी की !!
!! जय हो श्री श्यामसुन्दर जी की !!
बस जिस दिन ये समर्पण भाव आ जाता है उसके बाद कोई दूरी नही बचती………ये मेरा बहुत मनपसन्द भजन है।
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