!!!! यह पेज मेरे प्रिय श्री श्यामसुन्दर जी और श्री राधारानी जी के श्री चरणों में समर्पित हैं !!!!
This Page is Dedicated to the Lotus Feet of Shri Shyamsundar Ji and Shri Radharani Ji
!! ॐ !!
Tuesday, June 8, 2010
!! मनिहारिन वेषधारी श्री श्यामसुन्दर जी !! Bangle Seller Shri Shyamsundar Ji
श्री धाम वृंदावन के मनिहारिन वेषधारी श्री श्यामसुन्दर जी
चौंकिये मत....ये हमारे प्रिय श्री धाम वृन्दावन के श्री श्यामसुन्दर जी है, मनिहारिन के भेष में....श्री श्यामसुन्दर जी का ये अनुपम वेष हमे उनकी ही एक बहुत ही विनोदमयी लीला की स्मृति कराता हैं....आइये चले हम सभी उस लीला का रसास्वादन करे...
एक बार श्री श्यामसुन्दर जी राधाजी और सभी सखियों के पास मनिहारिन के भेष में चूड़ी बेचने श्री राधा जी की श्री नगरी बरसना जाते है....
मनिहारिन का भेष बनाए श्री श्यामसुंदर जी, अपने सिर पे चूड़ी से भरी टोकरी और कंधे पर चूड़ी के गुच्छे लटकाए हुए बरसाना कि और निकल पड़ते है..अपनी प्रिय श्री राधारानी से मिलने के लिए...
जब श्री श्यामसुंदर बरसाना गाँव पहुचते हैं, तो जोर जोर से स्त्री की आवाज़ निकलते हुए बोलते है....."चूड़ी ले लो....."...."रंग बिरंगी चूड़ी ले लो....."
उनकी यह आवाज़ जब श्री राधारानी की कानो में पड़ती है तो वो अपनी सखी ललिता जी से कहती हैं, कि ओ ललिता....देख कोई चूड़ी बेचने वाली आई है.....उसके पास बहुत सारी रंग बिरंगी चूड़िया होंगी....जाओ और उसे यहाँ बुला के लाओ...
राधा ने सुनी, ललिता से कही... राधा ने सुनी, ललिता से कही... मोहन को तुरंत बुलाया.. श्याम चूड़ी बेचने आया..
ललिता जी.....उस मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर जी को राधा जी के पास बुला लाती हैं, और श्यामसुंदर जी उनको अलग अलग रंग की चूड़िया दिखने लगते है....अनायास ही श्री राधा जी को श्री श्यामसुन्दर का श्याम वर्ण याद आता है और वो उस मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर से इसप्रकार कहने लगती है....
चूड़ी लाल नही पहनूं, चूड़ी हरी नही पहनूं.... चूड़ी लाल नही पहनूं , चूड़ी हरी नही पहनूं... मोहे श्याम रंग ही भाया.... श्याम चूड़ी बेचने आया....
फिर मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर जी अपनी टोकरी से श्यामल रंग की चूड़िया निकालते है और राधा जी से कहते हैं....ओ श्री राधा जी अपना हाथ मेरे हाथ में दीजिये ..ताकि मैं आपको चूड़िया पहना सकूँ और श्री राधारानी जी अपना हाथ श्यामसुंदर के हाथ में देती है....
श्री श्यामसुंदर का सुमधुर स्पर्श पाकर.....श्री राधारानी को यह समझने में देर नहीं लगती की यह तो छलिया कन्हैया हैं.....मनिहारिन का भेष धर के फिर से मुझे छलने आया है....ऐसा सोच कर वो उनका हाथ दबा के इस प्रकार कहने लगती हैं....
राधा कहने लगी तुम हो छलिया बड़े.. राधा कहने लगी तुम हो छलिया बड़े.. धीरे से हाथ दबाया... श्याम चूड़ी बेचने आया...
छलिया का वेश बनाया... श्याम चूड़ी बेचने आया... मनिहारिन का भेष बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया...
तत्पश्चात जब श्री श्यामसुन्दर जी का छद्म भेष का पता सब सखियों को भी चलता हैं, तो वे सभी हँस हँस के श्री श्यामसुंदर को मीठे-मीठे ताने देने लगती है....और हमारी प्रिय राधारानी रूठ कर यमुना किनारे जाती है...और श्री श्यामसुंदर जी उन्हें मनाने उनके पीछे-पीछे यमुना तट पर पहुँचते हैं और अंतत अपनी बांसुरी की मधुर धुन से श्री राधारानी को मनाने में सफल हो ही जाते हैं...
!! जय जय मनिहारिन भेषधारी श्री श्यामसुन्दर जी !! !! जय जय श्री राधारानी जी !!
आप सभी यह सुन्दर भाव नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सुन सकते हैं....
ये लीजिये.....हमारे प्रभु श्री श्यामसुंदर फिर से आ गए मनिहारिन के भेष में एक बार फिर श्री राधारानी के बरसाना जाने के लिए और इस बार उन्होंने प्रण किया कि इस बार वो नहीं पकडे जायेंगे......यद्यपि उनका यह भेष बदलना तो बस राधारानी से मिलने का मात्र बहाना था.....
इस बार प्रभु ने बहुत सुन्दर श्रृंगार किया और मुहँ पर एक लम्बा घूँघट लगाये और फिर और भी अनोखी चूड़ियों की टोकरी सिर में रख और कंधे पर चूड़ी के गुच्छे लटकाए हुए निकल पड़े श्री धाम बरसाना कि ओर....
जब श्री श्यामसुंदर बरसाना गाँव पहुचते हैं, तो जोर जोर से स्त्री की आवाज़ निकलते हुए बोलते है....."चूड़ी ले लो....."...."रंग बिरंगी चूड़ी ले लो....."
उनकी यह आवाज़ जब श्री राधारानी की कानो में पड़ती है तो वो अपनी सखी ललिता जी से कहती हैं, कि ओ ललिता....देख कोई चूड़ी बेचने वाली आई है........उसके पास बहुत सारी रंग बिरंगी चूड़िया होंगी....और हाँ, इस बार जरा ध्यान से देखना....कहीं वो छलिया कन्हैया न हो......जरा ध्यान से परख कर ही लाना.....अब जाओ और उसे यहाँ बुला के लाओ...
राधा ने सुनी, ललिता से कही... राधा ने सुनी, ललिता से कही... मोहन को तुरंत बुलाया.. श्याम चूड़ी बेचने आया..
ललिता जी.....इस बार बड़े ध्यान से उस मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर जी को देखती है.... लेकिन उनके इस श्रृंगार के और मुहँ पर पड़े लम्बे से घूँघट के कारण पहचान न सकी और उससे इस प्रकार कहती है....
ललिता : "अरी ओ चूड़ी वाली...कहाँ से आई हो..तुम्हारे गाँव का नाम क्या है?? पहले कभी नहीं देखा तुम्हे यहाँ...जरा अपना चेहरा तो दिखा, इतना लम्बा घूँघट क्यों लगा रखा है....??"
श्यामसुंदर स्त्री की सी अत्यंत ही धीमी आवाज़ में बोलते हैं : "गोकुल से आई हूँ, मैं देखने में बहुत ही सुन्दर हूँ....मेरी सास और मेरे पति ने मुझे मना किया है किसी के सामने घूँघट उठाने को, इसलिए मैंने घूँघट लगा रखा है...."
ललिता : "अच्छा ठीक है यह बताओ....गोकुल से आई हो....कन्हैया को देखा था क्या तुमने वहाँ?" श्यामसुंदर (स्त्री की आवाज़ में) : "हाँ देखा तो था...वो यमुना तट पर गैया चरा रहा था.....मुझसे उसने कहा की तुम बरसाना जा रही हो, तो राधे को कहना की मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ....और जल्द ही उससे मिलने आऊंगा...."
और फिर उसके बाद ललिता जी मनिहारिन भेषधारी श्याम सुन्दर को श्री राधा जी के पास लाती हैं, और फिर श्यामसुंदर जी उनको अलग अलग रंग की चूड़िया दिखने लगते है....अनायास ही श्री राधा जी को फिर श्री श्यामसुन्दर का श्याम वर्ण याद आता है और वो उस मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर से इस प्रकार कहने लगती है......
चूड़ी लाल नही पहनूं, चूड़ी हरी नही पहनूं.... चूड़ी लाल नही पहनूं , चूड़ी हरी नही पहनूं... मोहे श्याम रंग ही भाया.... श्याम चूड़ी बेचने आया....
फिर मनिहारिन भेषधारी श्यामसुन्दर अपनी टोकरी से श्यामल रंग की चूड़िया निकालते है और राधा जी से कहते हैं....ओ श्री राधा जी अपना हाथ मेरे हाथ में दीजिये ..ताकि मैं आपको चूड़िया पहना सकूँ और श्री राधारानी जी अपना हाथ श्यामसुंदर के हाथ में देती है....
श्री श्यामसुंदर का सुमधुर स्पर्श पाकर.....श्री राधारानी को यह समझने में देर नहीं लगती की यह तो छलिया कन्हैया हैं.....मनिहारिन का भेष धर के फिर से मुझे छलने आया है....ऐसा सोच कर वो उनका हाथ दबा के इस प्रकार कहने लगती हैं....
राधा कहने लगी तुम हो छलिया बड़े..
राधा कहने लगी तुम हो छलिया बड़े.. धीरे से हाथ दबाया... श्याम चूड़ी बेचने आया...
छलिया का वेश बनाया...
श्याम चूड़ी बेचने आया... मनिहारिन का भेष बनाया, श्याम चूड़ी बेचने आया...
तत्पश्चात जब श्री श्यामसुन्दर जी का छद्म भेष का पता सब सखियों को भी चलता हैं, तो वे सभी हँस हँस के श्री श्यामसुंदर को मीठे-मीठे ताने देने लगती है....और हमारी प्रिय राधारानी रूठ कर यमुना किनारे जाती है...और श्री श्यामसुंदर जी उन्हें मनाने उनके पीछे-पीछे यमुना तट पर पहुँचते हैं और अंतत अपनी बांसुरी की मधुर धुन से श्री राधारानी को मनाने में सफल हो ही जाते हैं...
!! जय जय श्री मनिहारिन भेषधारी श्री श्यामसुंदर जी !! !! जय जय श्री राधारानी जी !!
हे इष्टदेव, कुलदेव म्हारा श्यामधणी, थारे द्वार पे उभा थारा टाबरिया थां
सूँ या ही अरज करे ह... हे खाटू के श्याम प्रभु, मुझे दरस दिखा देना...मेरी
भूल क्षमा...
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