वर्षा ऋतू का आगमन हो चुका हैं...और आज इस मौसम की पहली बारिश का अनुभव बहुत ही अनूठा सा था...बस हृदय झूम झूम मन ही मन में श्यामसुन्दर से यही कह रहा था कि...
श्यामसुन्दर मेरे, मौसम आया...
धरती के श्रृंगार का...अरे डाल डाल पर, लग गए झूले...
बरसे रंग बहार का....
उमड़ घुमड़ काली घटा, शोर मचाती है...
स्वागत में तेरे सांवरा, जल बरसाती हैं...
ओ कोयालियाँ कूकती, मयूरी झूमती...
तुम्हारे बिन मुझको मोहन, बहारे फीकी लगती हैं...
श्यामसुन्दर मेरे, मौसम आया...
धरती के श्रृंगार का...
अरे डाल डाल पर, लग गए झूले...
बरसे रंग बहार का....
चांदी वरण की चांदनी, अंग जलाती हैं...
झरनों की यह रागिनी, दिल तडपाती है...
चली जब पुरवाई, तुम्हारी याद आई...
गुलो में अंगारे दहके, कसक बढती ही जाती हैं...
श्यामसुन्दर मेरे, मौसम आया...
धरती के श्रृंगार का...
अरे डाल डाल पर, लग गए झूले...
बरसे रंग बहार का....
श्री राधे के संग में, झूलो जी मोहन...
छेड़ रसीली बांसुरी, शीतल हों तन मन...
तुम्हारी राह में, मिलन की चाह में..
बिछाये पलके बैठा हूँ, तुम्हारी याद सताती हैं...
श्यामसुन्दर मेरे मौसम आया...
धरती के श्रृंगार का...
अरे डाल डाल पर लग गए झूले...
बरसे रंग बहार का....
!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी !!
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