!! जय जय नीलमणि नन्दलाल की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
इस अनुपम एवं मनोहारी और चित्त को शांतचित्त कर देने वाली छवि को देख, मुझे सूरदास जी द्वारा रचित एक बहुत ही सुन्दर पद का वर्णन करने का मन कर रहा है, आइये चले सूरदास जी द्वारा रचित इस पद के भावो का रसास्वादन करे..
इस अनुपम छवि मे हमारे नीलमणि नन्दलाल, छोटे से गोपाल को यशोदा मैया और दाऊ भैया मिलकर श्रृंगार कर रहे है...दाऊ भैया उनके पैरों में पायल पहना रहे हैं...मैया ने उनके केशों को संवारा हैं और उन्हें तरह तरह के आभूषण पहना रही हैं...तभी आकस्मात ही नन्दलाल कन्हैया की नज़र दाऊ भैया की सिर की चोटी पर पड़ती है, जिससे उनको कुछ याद आता है....और वे मैया को उलाहना देने लगते हैं...
जैसा की हम सभी जानते है, कि प्राय: छोटे बालक दूध पीने के लिए आनाकानी किया करते है....वैसे ही हमारे नटखट नीलमणि नन्दलाल भी अपने बाल स्वभाव के वशीभूत हो प्राय: दूध पीने में आनाकानी किया करते थे....तत्पश्चात एक दिन मैया यशोदा ने अपने प्रिय कनुआ को प्रलोभन दिया कि : “अरे कनुआ! तू नित्य प्रतिदिन कच्चा दूध पिया कर....इससे तेरी सिर की चोटी तेरे दाऊ भैया जैसी मोटी और लंबी हो जाएगी....“
मैया कि यह बात सुन कन्हैया नित्य प्रतिदिन बिना आनाकानी के दूध पी लिया करते थे... लेकिन बहुत दिन बीत जाने के बाद एक दिन कन्हैया ने देखा कि उनकी चोटी तो अभी भी दाऊ भैया की चोटी से छोटी है, तो (निश्चल बालहृदय को क्या पता की उसकी स्वयं चोटी तो बढ़ ही रही थी, लेकिन साथ ही साथ उसके भैया की चोटी बढ़ रही थी, इसलिए उनको अपनी चोटी छोटी लगती थी..) फिर वे अपनी मैया यशोदा से उलाहना देते हुए कहते है :
मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी...
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी..
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी...
काढ़त गुहत न्हवावत जै है नागिन-सी भुई लोटी...
काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन रोटी...
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी...
“अरी मोरी प्यारी मैया! अब तू ही बता न, कि मेरी यह चोटी कब बढ़ेगी...? तेरे कथन के अनुसार मुझे दूध पीते हुए कितना समय हो गया.....लेकिन ये चोटी तो अब तक भी वैसी ही छोटी है......अरी मैया! तू तो कहती थी कि दूध पीने से मेरी यह चोटी दाऊ भैया की चोटी जैसी लंबी व मोटी हो जाएगी...लेकिन यह तो अभी अभी दाऊ भैया कि चोटी से छोटी है.... संभवत: इसीलिए तू मुझे नित्य नहलाकर मेरे केशो को कंघी से संवारती है, मेरी चोटी गूंथती है... जिससे चोटी बढ़कर नागिन जैसी लंबी हो जाए....और मुझे कच्चा दूध भी इसीलिए पिलाती है... अरी मैया ! इस चोटी के ही कारण तू मुझे माखन व रोटी भी नहीं देती....”
इतना कहकर हमारे प्रिय नीलमणि नंदलाला अपनी मैया से रूठ जाते हैं....और श्री सूरदास जी कहते हैं कि तीनों लोकों में श्री श्यामसुन्दर और श्री बलभद्र जी की अनुपम जोड़ी मन को सुख पहुंचाने वाली है...
!! जय जय नीलमणि नन्दलाल की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
Mukesh K. Agrawal
नोट : “सूरदास जी द्वारा रचित इस इस अनुपम सुन्दर पद “मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी” के भावार्थ के शाब्दिक लेखन में कुछ त्रुटि हो तो क्षमा कीजियेगा..”
!! जय जय नीलमणि नन्दलाल की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
!! जय जय गौरवर्ण बलराम जी की !!
can you put some pad of surdas with photos
ReplyDeletethe president