!! ॐ !!


Thursday, August 26, 2010

!! ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं... !!





























इस संसार सागर में जो कोई भी जीव अपने ठाकुर श्री श्यामसुन्दर जी को सच्चे ह्रदय से समर्पित हो कर उनसे प्रेम करता हैं...उनको ही श्री श्यामसुन्दर जी का अथाह प्रेम प्राप्त होता हैं... जिस प्रकार हम प्रभु को प्रेमपूर्वक उनकी दर्शन की आस में जगह-जगह ढूंढते है... ठीक उसी प्रकार ही हमारे श्यामसुन्दर जी अपने प्रिय भक्त को ढूंढते रहते हैं... प्रेम ही एक ऐसी डोर हैं.... जिसमे हमारे प्रभु बंधकर अपने भक्त के पास आ जाते है...


ऐसे ही एक महान संत "श्रीकृष्णकृपामूर्ती श्री श्रीमद् अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद''  थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन श्री श्यामसुन्दर जी के श्री चरणों की भक्ति में समर्पित कर दिया...और "इस्कोन" रूपी "भक्ति कल्पवृक्ष" को लगा कर इस सम्पूर्ण संसार में श्री श्यामसुन्दर जी की श्री चरणों की भक्ति रूपी "फल" के स्वरुप को जन जन तक पहुँचाया...आज, वे पुण्य आत्मा हमारे बीच शारीरिक रूप से विद्यमान नहीं है...परन्तु उनके पवित्र आदर्श, शिक्षा और श्री श्यामसुन्दर प्रेम ने अभी तक उनको हमारे बीच जीवंत किया हुआ है...


      आइये चले हम सभी उस पुण्यात्मा को श्रद्धा पूर्वक नमन करते है..


नमः ओम विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले,
श्रीमते भक्तिवेदांत स्वामिन् इति नामिने !
नमस्ते सारस्वते देवे गौरवाणी प्रचारिणे,
निर्विशेष शून्यवादी पश्र्यात्य देश तारिणे !!


हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे



































सच्चे हृदय से हो के समर्पित, अपने ठाकुर को जो पूजता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


जिसकी नैया संभाले कन्हैया, उसको कोई फिकर न भंवर का...
एक उसकी ही मंजिल सही है, जो पथिक है प्रभु के डगर का...
गम की आंधी उसे क्या उड़ाये, जो प्रभु मौज में झूमता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


जिसका रिश्ता हो मायापति से, जग की माया उसे क्या लुभाये...
उनकी नज़रों में सब है बराबर, कोई अपना न कोई पराये...
जिनके दिल में बसा श्यामसुंदर, हर कहीं श्याम को देखता है....
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं....



प्रेम की डोर से बंधके भगवन, भक्त के द्वार पे चलके आये...
रंग लाती है चाहत सभी की, आके गागर में जब सागर समाये...
बोल तेरी रजां क्या है प्यारे, जीव से ब्रम्ह यूँ पुछता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


एक दिन छोड़ के जग जाना, 'बिन्नू' बन जा प्रभु का दीवाना..
श्याम को जिसने अपना हैं माना, उनको चरणों में मिलता ठिकाना..
जाने के बाद में ये जमाना, उनके चरणों के रज ढूंढता है..
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


सच्चे ह्रदय से हो के समर्पित, प्रेम श्यामसुंदर से जो करता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, मेरा सांवरा भी उसे ढूंढता हैं....






























 जय जय श्री राधा श्यामसुन्दर जी

जय  श्रीकृष्णकृपामूर्ती अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद जी

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