!! ॐ !!


Wednesday, August 4, 2010

!! नयनों वाला काजलिया बनाय तुझे नयनो में बसा लूँ... !!




!! जय जय श्रीधाम वृंदावन के श्री श्यामसुंदर जी !!


हे! मेरे श्यामसुंदर...आपकी यह अलौकिक छवि चित्त को हर लेने वाली है.... अरमान तो यही है, कि आपकी इस छवि को मेरे चित्त के श्रृंगार हेतु हमेशा नयन पटलो में ऐसे बसा लू, जैसे कोई स्त्री अपने मुखमंडल के श्रृंगार हेतु नित-प्रति अपने नयनो में काजल को बसा रखती है...



नयनों वाला काजलिया बनाय तुझे नयनो में बसा लू, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
तुमसे तो मेरी पहले से पहचान, फिर कैसे भूले मुझे, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
मोर मुकुट सिर, कुंडल सोहे कान, तेरा नयन राशीला, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...



रंग-बिरंगे तेरे वस्त्र घेर घुमेर, तेरी मूरत हैं प्यारी, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
अब तो सुना भी दे तेरी रसीली वंशी की तान, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
आके मुझे गले से लगा ले, तेरी याद सतावे, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
तुमसे तो मेरी पहले से पहचान, फिर कैसे भूले मुझे, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...


अब तो मेरे इन नयनों में आन बसों जी, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
नयनों वाला काजलिया बनाय तुझे नयनो में बसा लू, मेरे श्यामसुंदर घनश्याम...
तुमसे तो मेरी पहले से पहचान, फिर कैसे भूले श्यामसुंदर घनश्याम...



!! जय जय श्रीधाम वृंदावन के श्री श्यामसुंदर जी !!

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