!! ॐ !!


Tuesday, August 31, 2010

!! कितनो बड़ो म्हारो भाग ह, कि थां सो कुलदेव मिल्यो... !!


म्हारा कुल रा देव, म्हारा प्राण सुं प्यारा, मोरवीनंदन "श्यामधणी"


ओ म्हारा धणी! आज म्हाने थारी घनि ओल्युं आ रही ह... कितनो धन्य धन्य भाग्य यो म्हारो ह...जो थां सो दानी, पराक्रमी, करुणा रा भण्डार, हारे रा सहारा, श्रीश्यामसुन्दर रा परमप्रिय देव म्हाने कुलदेवता रा रूप  म मिल्या ह... थारी श्री चरणा री प्रीत रो यो याचक थारे द्वार पर खड्यो थांसू विनती करे ह, कि एक बार म्हाने हिवडे सुं तो लगाओ...


ओ म्हारा धणी! थारो ही तो म्हारो इष्ट ह, और थे ही तो म्हारा प्राण प्यारा हो... थारे प्रीत रा बिना म्हे कईया जीवस्यां... इसलिए ओ धणी! थारा इ टाबर न भूल बिसर मत जाज्यो...म्हे तो थारे स केवल एक ही वर माँगा ह कि, म्हे नित-निरंतर थारा श्री चरणा रा दास बनया रहवा और थारो करूणा रो हाथ सदैव म्हारे सिर पर रहवे...


म्हे नित लेवा जी थारो नाम, म्हारा बाबा थाने राम राम
ओ भूल बिसर मत जाज्यो जी, थारे टाबर न  




कितनो बड़ो म्हारो भाग ह, कि थां सो कुलदेव मिल्यो...
म्हाने हिवड़े सुं लगाईज्यो, म्हारा श्याम जी...
ओ सब न राजी राखिज्यो, म्हारा श्याम जी...


साँवरा मोटाधणी, सारा जग म थारो नाम ह...
बड़ा-बड़ा थे काज सारो, छोटो सो म्हारो काम ह...
अरजी करनी फ़रज ह म्हारो, जोर कुछ चाले नहीं...
थारी मरजी के बिना, एक पत्तो भी हाले नहीं...


नित उठ थारो ध्यान धरां म्हे, घनि करां मनुहार...
ओ थे पलक उठावो जी, म्हारा श्याम जी...



कितनो बड़ो म्हारो भाग ह, कि थां सो कुलदेव मिल्यो..
म्हाने हिवड़े सुं लगाईज्यो, म्हारा श्याम जी...
ओ सब न राजी राखिज्यो, म्हारा श्याम जी...


थारो ही तो म्हारो इष्ट ह, और थां म ही म्हारा प्राण ह...
थे ही अगर रूठ गया तो, फिर जीनो को काइ काम ह...
भूल म्हारी माफ़ करदयों, चरणा सुं ल्यो लगाओ...
ठोकरां खाई घनि अब, आके सही रास्तो बताओ...


थारे बिना कईया जीवस्यां बाबा, थे भी न बिसराओ...
ओल्युं थारी आवे जी, म्हारा श्याम जी...


कितनो बड़ो म्हारो भाग ह, कि थां सो कुलदेव मिल्यो...
म्हाने हिवड़े सुं लगाईज्यो, म्हारा श्याम जी...
ओ सब न राजी राखिज्यो, म्हारा श्याम जी...


थे ही म्हारी ज़िन्दगी हों, और थां पे ही दाराम्दार ह...
थोड़ो थोड़ो म्हारा नेड़ा आओ, जी स म्हारो बड़ो पार ह...
"चंदा" थाने के कहवे, कि थे ही जगत का नाथ हो...
हर साल ही खाटू आऊं मैं, और म्हारा परिवार साथ हो...


'भगवानो' थारो दास रहवे, बी क सिर पर थारो हाथ...
यो ही वर माँगा जी, म्हारा श्याम जी...






कितनो बड़ो म्हारो भाग ह, कि थां सो कुलदेव मिल्यो...
म्हाने हिवड़े सुं लगाईज्यो, म्हारा श्याम जी...
ओ सब न राजी राखिज्यो, म्हारा श्याम जी...                           
म्हारा मनरा री आस पूरण करज्यो, म्हारा श्याम जी...            

            


                      !! लखदातर की जय !!

                     !! खाटू नरेश की जय !!
 
                   !! हारे के सहारे की जय !!

                  !! शीश के दानी की जय !!

                 !! तीन बाण धारी की जय !!
 
                !! म्हारा श्यामधणी की जय !!

            !! मोरवीनंदन बाबा श्याम की जय !!  
 

Monday, August 30, 2010

!! दो आंसू तो दे दे, चरणों में बहाने को... !!




हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर... अब कब तुम्हारी दया दृष्टि इस अदने से दास पर पड़ेगी?... और कब मेरे यह नयन प्रेमपूर्वक केवल तेरी ही यादों में अश्रुओं से सजल होंगे?... कब मेरे इस हृदय को तुम्हारी विरह वेदना की पीड़ा का अनुभव होगा?... मुझे क्या पता था कि तेरे प्रेम में निकले हुए अश्रु रूपी खजाना, केवल किस्मत और तेरी दया दृष्टि से ही मिलता हैं... और उनके बह जाने से ही तुम्हारी असीम कृपा प्राप्त होती है और तुम्हारा अद्वितीय, अनुपम प्रेम और दीदार प्राप्त होता हैं...


इसलिए, हे! मेरे श्यामसुन्दर... मेरी केवल एक ही इच्छा शेष रह गयी है... कृपया कर तुम्हारे प्रेम रूपी सागर की २ बुँदे, अश्रुओं के रूप में, तुम्हारे ही श्री चरणों में समर्पित करने हेतु मुझे दे दो... अब कब मुझे पर दया करोगे, मेरे दीनबंधू, दीनानाथ...?




हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर... अब, मेरी तुमसे एकमात्र यही अरदास है कि...


कुछ दे या न दे श्याम, इस अपने दीवाने को...
दो आँसू तो दे दे, चरणों में बहाने को...


हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर...


नरसी ने बहाए थे, मीरा ने बहाए थे...
जब जब भी कोई रोया, तुम दौड़ के आये थे...
काफी है दो बुँदे, घनश्याम रिझाने को...
दो आँसू तो दे दे, चरणों में बहाने को...


अब तक मुझे क्या पता था कि...


आँसू वो ख़जाना है, किस्मत से मिलता है...
इनके बह जाने से मेरा श्याम, पिघलता है...
करुणा का तू सागर है, अब छोड़ बहाने को...
दो आंसू तो दे दे, चरणों में बहाने को...


अब मुझे एहसास हुआ है कि...


दुःख में बह जाते है, खुशियों में जरुरी है...
आँसू के बिना मेरे श्याम, हर आँख अधूरी है...
पूरा करते आँसू, हर एक हर्जाने को...
दो आंसू तो दे दे, चरणों में बहाने को...



कुछ दे या न दे श्याम, इस अपने दीवाने को...
दो आँसू तो दे दे, चरणों में बहाने को...


               !! जय हो समस्त भक्तवृंद के प्रेमाश्रुओं की !!

!! जय हो समस्त भक्तवृंद के श्रीहृदय में विराजित श्री श्यामसुन्दर की !!
 
 
 

Saturday, August 28, 2010

!! रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे... !!




आहा!!! कितनो अनुपम और मनोहारी रूप ह थारो, ओ श्यामसुन्दर...

हे! प्रिय श्यामसुन्दर... निःसंदेह थारा यो आकर्षक, नयनाभिराम अद्भुत रूप, और थारे संग लागे री प्रीत ही, थारे समस्त प्रेमियों के चंचल चित्त न थारे प्रतिपल दर्शन की चाह के लिए और भी उद्विग्न कर देवे ह... थारे प्रेमियों के, बावरे नैन भी थारी यादां म आंसुड़ा बरसावे ह... अब तो देर न करो... बेगा सा पधारो न...और अपने प्रेमियों न अपणे श्री चरणों की धुल सुं कृतार्थ करो न...ठीक उसी तरह जिस तरह सुं थे, श्रीराधाभाव विभावित विग्रह वाले, श्री हरिनाम के उपदेशक श्रीकृष्णचैतन्य गौरचंद्र और निताईचंद्र क ऊपर अपनी करुण कृपा बरसाई थी...

ह्रदय म श्री श्यामसुन्दर जी रो साँचो प्रेम ही, उनका प्रेमियां का आंख्या सुं आंसुड़ा का रूप म बरसे ह... श्री गौरचंद्र और श्री निताईचंद्र जी री आंख्या भी इसी तरह  प्रभु री विरह वेदना सुं, श्री श्यामसुन्दर जी री प्रीत रा सागर म हमेशा डूबी रहती थी...और हर पल उनका ह्रदय म यहीं भाव रहतो की कद सी श्री श्यामसुन्दर दरश दिखाकर हिवड़े सुं लगावगा...

         श्री श्यामसुन्दर जी रा प्रेम म निमग्न श्री गौरचंद्र


रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे...
ओ श्यामसुन्दर थांसू मिलने को, म्हारो मनरो तरसे...


जल बिन मछली तड़पे जईया, थां बिन थांको दास...
चाँद चकोरी जईया म्हाने, चाह मिलन की आस...

     श्री श्यामसुन्दर जी रा प्रेम म निमग्न श्री निताईचंद्र


रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे...
ओ श्यामसुन्दर थांसू मिलने को, म्हारो मनरो तरसे...


थांसू मेरो प्रेम हुओ कोई, पूर्व जनम का लेख...
आंख्या म बस जाओ म्हारे, जईया काजल की रेख...



          श्री श्यामसुन्दर जी रा प्रेम म नाचता श्री गौरांग निताई

रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे...
ओ श्यामसुन्दर थांसू मिलने को, म्हारो मनरो तरसे...


याद थारी आते ही श्यामसुंदर, देखूँ चारो ओर...
मस्ती म मैं अईया नाचूँ, जईया जंगल में मोर...

          श्री श्यामसुन्दर जी रा प्रेम म नाचता श्री गौरांग निताई


रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे...
ओ श्यामसुन्दर थांसू मिलने को, म्हारो मनरो तरसे...


अब तो बेगा पधारों सांवरिया, म्हे निहाराँ थारी राह...
थांसू मिलने री हो जावे पूरी, म्हारे मन री चाह...

                    श्री श्यामसुन्दर, श्री गौरचंद्र न हिवड़े सुं लगावता

रिमझिम रिमझिम म्हारी आंख्या स, आंसुड़ा बरसे...
ओ श्यामसुन्दर थांसू मिलने को, म्हारो मनरो तरसे...

 
             !! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी !!

  !! जय जय श्री गौरचंद्र, जय जय श्री निताईचंद्र !!

       
         हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
             हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे

Thursday, August 26, 2010

!! ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं... !!





























इस संसार सागर में जो कोई भी जीव अपने ठाकुर श्री श्यामसुन्दर जी को सच्चे ह्रदय से समर्पित हो कर उनसे प्रेम करता हैं...उनको ही श्री श्यामसुन्दर जी का अथाह प्रेम प्राप्त होता हैं... जिस प्रकार हम प्रभु को प्रेमपूर्वक उनकी दर्शन की आस में जगह-जगह ढूंढते है... ठीक उसी प्रकार ही हमारे श्यामसुन्दर जी अपने प्रिय भक्त को ढूंढते रहते हैं... प्रेम ही एक ऐसी डोर हैं.... जिसमे हमारे प्रभु बंधकर अपने भक्त के पास आ जाते है...


ऐसे ही एक महान संत "श्रीकृष्णकृपामूर्ती श्री श्रीमद् अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद''  थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन श्री श्यामसुन्दर जी के श्री चरणों की भक्ति में समर्पित कर दिया...और "इस्कोन" रूपी "भक्ति कल्पवृक्ष" को लगा कर इस सम्पूर्ण संसार में श्री श्यामसुन्दर जी की श्री चरणों की भक्ति रूपी "फल" के स्वरुप को जन जन तक पहुँचाया...आज, वे पुण्य आत्मा हमारे बीच शारीरिक रूप से विद्यमान नहीं है...परन्तु उनके पवित्र आदर्श, शिक्षा और श्री श्यामसुन्दर प्रेम ने अभी तक उनको हमारे बीच जीवंत किया हुआ है...


      आइये चले हम सभी उस पुण्यात्मा को श्रद्धा पूर्वक नमन करते है..


नमः ओम विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले,
श्रीमते भक्तिवेदांत स्वामिन् इति नामिने !
नमस्ते सारस्वते देवे गौरवाणी प्रचारिणे,
निर्विशेष शून्यवादी पश्र्यात्य देश तारिणे !!


हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे



































सच्चे हृदय से हो के समर्पित, अपने ठाकुर को जो पूजता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


जिसकी नैया संभाले कन्हैया, उसको कोई फिकर न भंवर का...
एक उसकी ही मंजिल सही है, जो पथिक है प्रभु के डगर का...
गम की आंधी उसे क्या उड़ाये, जो प्रभु मौज में झूमता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


जिसका रिश्ता हो मायापति से, जग की माया उसे क्या लुभाये...
उनकी नज़रों में सब है बराबर, कोई अपना न कोई पराये...
जिनके दिल में बसा श्यामसुंदर, हर कहीं श्याम को देखता है....
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं....



प्रेम की डोर से बंधके भगवन, भक्त के द्वार पे चलके आये...
रंग लाती है चाहत सभी की, आके गागर में जब सागर समाये...
बोल तेरी रजां क्या है प्यारे, जीव से ब्रम्ह यूँ पुछता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


एक दिन छोड़ के जग जाना, 'बिन्नू' बन जा प्रभु का दीवाना..
श्याम को जिसने अपना हैं माना, उनको चरणों में मिलता ठिकाना..
जाने के बाद में ये जमाना, उनके चरणों के रज ढूंढता है..
ढूंढता जो सदा सांवरे को, सांवरा भी उसे ढूंढता हैं...


सच्चे ह्रदय से हो के समर्पित, प्रेम श्यामसुंदर से जो करता है...
ढूंढता जो सदा सांवरे को, मेरा सांवरा भी उसे ढूंढता हैं....






























 जय जय श्री राधा श्यामसुन्दर जी

जय  श्रीकृष्णकृपामूर्ती अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद जी

Tuesday, August 24, 2010

!! सांवरिया थारो, रूप समायो नयना माहि जी... !!



हे! मेरे प्रिय श्यामसुन्दर सांवरिया.... आज आपकी ये अद्वितीय, अद्भुत, मोहिनी मूरत मेरे इन नयनो में ऐसी समा गयी है कि, दिल करता है इस अनुपम छवि को अपने नयन पटल में छिपा उसकी पलके बंद कर लूँ... आपके इस अनुपम, अद्वितीय श्रृंगार के सौंदर्य के दृष्टिगत पान ने, मेरे इन नयनो को बहुत ही सुखद एहसास दिया है... और मन बार बार आपके इस सौन्दर्य को भावना के इन श्री भाव बिंदु के माध्यम से व्यक्त करता है...






सांवरिया थारो, रूप समायो नयना माहि जी...
पलकां म थाने, बंद कर राखा जी...
पलकां म थाने, बंद कर राखा जी...


मनमोहन थारे, माथे मुकुटमणि सोहे जी...
ये लट घुंघराला, लागे सुप्यारा जी...
ये लट घुंघराला, लागे सुप्यारा जी...


















ओ रसिया थारे, केशरिया बागो तन पे साजे जी...
काना म कुण्डल, चमके निराला जी...
काना म कुण्डल, चमके निराला जी...


श्यामसुन्दर थारे, मनमोहा वंशी मुख पे साजे जी..
बाजे तो म्हारो, मनरो लुभावे जी...
बाजे तो म्हारो, मनरो लुभावे जी...















मनबसिया थारे, श्री चरणा पे पायल साजे जी...
थे आवो देवा, बेगा पधारो जी...
थे आवो देवा, बेगा पधारो जी...


म्हारा श्याम थे तो, सांवरिया सेठ भी कुहाओ जी...
है ठाठ थारा, देखा निराला जी...
है ठाठ थारा, देखा निराला जी...


सांवरिया थारी, सूरत पे जावे म्हे तो वारि जी...
मन मोहे मोहन, मुस्कान थारी जी...
मन मोहे मोहन, मुस्कान थारी जी...


सांवरिया थारो, रूप समायो नयना माहि जी...
पलकां म थाने, बंद कर राखा जी...
पलकां म थाने, बंद कर राखा जी...


!! जय जय श्री श्यामसुन्दर जी !!


Monday, August 23, 2010

!! आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर... !!






आहा!! कितना मनोरम दृश्य हैं... ये सावन का सुहाना महिना.... श्री धाम वृन्दावन के कुंजो में गुदगुदाने वाली हरी मखमली घास... वृज के सम्पूर्ण वनों में भी केवल हरीतिमा ही हरीतिमा.... आसमान में उमड़ते-घुमड़ते कजरारे बादलों की अनुपम छटा... मयूरों का नर्तन... बालू में नहाती हुई चिड़ियों का कलरव.... पेडों से टपकती रिमझिम बूंदें, और उसी पेड़ पर बने झूले में झूलते हुए श्यामसुन्दर सरकार के अधरों पर रसीली बांसुरी की मधुर तान सुन श्रीमती राधेरानी का आगमन और उनका हिंडोरे में विराजना और सखियों के द्वारा युगल सरकार को झुला झुलाना....


अरे छाई सावन की है बदरिया, और ठंडी पड़े फुहार...
जब श्यामसुंदर बजाई बांसुरी, झूलन चली अलबेली सरकार...




ओ सावन का महिना, घटाए घनघोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...


प्रेम हिंडोरे बैठे, श्यामसुन्दर बिहारी...
झुला झुलाये सारी, वृज की नारी...
जोड़ी लागे प्यारी, ज्यू चंदा और चकोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...


ठंडी फुहार पड़े, तन को लुभाये...
गीत गावे सखियाँ, और श्याम मुस्काये...
बांसुरियां बजावे, मेरे मन का चितचोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...


यमुना के तट पे नाचे, ता था तै था थैया...
श्री राधा को झुलाये, श्यामसुन्दर रासरचइया...
जग में छाई मस्ती, और मस्त हुए मनमोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...


देख युगल छवि, मन में समाई...
'श्यामसुंदर' ने  महिमा गाई...
देख के प्यारी जोड़ी मनवा हुए विभोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...


ओ सावन का महिना, घटाए घनघोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...
आज कदंब की डाली झूले, श्रीराधा नंदकिशोर...




एक बार की बात है कि, सावन के इसी पुनीत महीने में प्रिया राधा जी, प्रिय श्यामसुन्दर से रूठ जाती है... और प्रिया जी की यह मान मुद्रा, हमारे श्यामसुन्दर को बैचैन कर देती हैं, और वे श्री राधा जी को मनाने के लिए भिन्न भिन्न प्रयास करते हुए, एक कदंब के पेड़ के निकट खड़े हो, इस प्रकार अपनी वंशुरी के मधुर राग में श्री राधा जी से कहते है...



झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...


सावन सुहाना आया, गर्जन भी साथ लाया..
गर्जन भी साथ लाया..गर्जन भी साथ लाया..
अब देर न लगाओ...जल्दी करो तैयारी ...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...


श्री वंशीवट पे प्यारी, सुन्दर कदंब की डारी...
सुन्दर कदंब की डारी...सुन्दर कदंब की डारी...
सुन्दर सजा है झुला...जल्दी पधारो प्यारी...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...


झुला तुम्हे झुलाऊ, और बांसुरी सुनाऊ...
और बांसुरी सुनाऊ...और बांसुरी सुनाऊ...
अब मान को त्यागो, ये रुत बड़ी है प्यारी...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...


झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...
सुन्दर सजा है झुला...जल्दी पधारो प्यारी...
अब मान को त्यागो, ये रुत बड़ी है प्यारी...
अब देर न लगाओ...जल्दी करो तैयारी ...
झूलो की रुत है आई, ओ श्री राधा प्यारी...


और श्री श्यामसुन्दर के प्रेम के वशीभूत हो प्रिय राधा जी अपने मान को त्याग, श्यामसुन्दर के संग झूले में विराजित होती हैं, और श्यामसुंदर उन्हें अपने हाथो से झूले में झुलाते हैं...



आइये अब आप सभी को मेरे मित्र "अंकित अग्रवाल" के निवास स्थान में आयोजित परम पुनीत श्री झूलन महोत्सव में श्री राधा श्यामसुन्दर बिहारी जी की अनुपम झाँकी के दर्शन इस सुन्दर श्री भाव के साथ करवाता चलू...






















सावन की बरसी, ठंडी फुहार...
पेड़ो पे झूलो की, लगी कतार...
राधा झुला झूल रही, संग श्याम के...


श्याम की बांसुरिया, गीत मल्हार के गा रही हैं...
बदलो से जैसे, आज मोती से बरसा रही है...
पवन चले पुरवाई..
राधा झुला झूल रही, संग श्याम के...






















कूकती है कोयल, पिहू पिहू पपीहा पुकारे..
हर कदंब की डारी, बोले आओ सांवरिया हमारे..
झूलन की रुत आई...
राधा झुला झूल रही, संग श्याम के...






















ग्वाल बाल साखियाँ, आज होके मगन नाचते हैं...
हाथ जोड़ इनसे, आशीर्वाद सब मांगते हैं...
महिमा इनकी जग न्यारी...
राधा झुला झूल रही, संग श्याम के...





















इस युगल छवि का, कौन बन जायेगा न दीवाना...
राधा जू शमा सी, परवाना से लगते हैं कान्हा...
छवि मेरे मन भाई...
राधा झुला झूल रही, संग श्याम के...

सावन की बरसी ठंडी फुहार...
पेड़ो पे झूलो की लगी कतार...
राधा झुला झूल रही संग श्याम के...


!! जय जय श्री राधाश्यामसुन्दर !!

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